गुरुवार, 16 जनवरी 2020

लालच से बड़ा कोई रोग नहीं हिंदी कहानी Lalach ek rog hindi story

एक राजा था वह बड़ा लोभी प्रवृत्ति का था, उसके मन में सदैव दुसरे राज्यों को पाने की कामना रहती थी वह दूसरे राज्यों पर आक्रमण करके उन्हें अपने अधीन का लेता था उसके चापलूस मंत्री किसी बड़े राज्य की जानकारी देते और उसे वह अपने अधीन करने के लिए उकसाते थे  उसकी राज्य पाने की लालसा दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी उसे किसी राज्य की या किसी ऐसी वस्तु की जो अति सुंदर हो लेकिन उसके पास ना हो यह उसे स्वीकार नहीं था उसके आतंक से सभी दुखी थे यहाँ तक कि देवता भी दुखी हो उठे और यह देख इंद्र देव को बहुत क्रोध आया सभी देवताओं से मिलकर इस समस्या से मुक्ति पाने की योजना बनाई वे उस राजा के पास ब्राह्मण का वेश धारण करके राजा के पास गए राजा ने उनका खूब सत्कार किया और अपने राज्य का वर्णन करना शुरू किया तभी वह बोले मुझे क्षमा करें राजन आपके पास भले ही सब कुछ हैं परंतु अभी भी आपके पास वो राज्य नहीं हैं जो अति सुंदर और विशाल है उसकी खूबसूरती भी अद्वितीय है
 राजा सोच में पड़ गया कि ऐसा कौन सा राज्य है जो उसके पास नहीं है और वो इसके बारे में नहीं जानता है। राजा चिंता में डूब गया। इसी बीच ब्राह्मण के वेश में आए इंद्रदेव चले गए राजा को बाद में ध्यान आया कि उसने तो उस ब्राह्मण से उस राज्य का पता तो पूछा ही नहीं वह उस राज्य को पाने की इच्छा से अपने मंत्रियों सैनिकों गुप्तचरो को उस राज्य की खोज में भेज दिया कई दिन बीत गए लेकिन उन्हें वह राज्य नहीं मिला। राजा की तृष्णा बढती ही जा रही थी, वह किसी भी कीमत में उस राज्य को पाना चाहता था कोई भी उस राज्य को नहीं ढूंढ पाया था। राजा दिन रात उसी राज्य के बारे में सोचने लगा राज्य के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलने के कारण धीरे धीरे राजा बीमार पड़ने लगा वह अस्वस्थ होने के कारण काफी दुबला हो गया था सभी चिंतित थे कि उन पर कोई दवा अपना असर नहीं कर रही थी । एक दिन एक संत उस राज्य में आए रानी ने उन्हें बुलवाया और उनका खुब सत्कार किया। रानी ने संत से कहा हे महात्मन महाराज की दशा दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही हैं उन पर कोई दवा भी असर नहीं कर रही हैं। कृपया आप इनके स्वस्थ होने का कोई उपाय बताएं। संत बहुत ही ज्ञानी विद्धवान और दूरदर्शी थे। वे राजा के कक्ष में गये राजा को देखकर उन्होंने कहा , राजा को कोई रोग नहीं हैं, परंतु राजा को कोई ऐसी वस्तु पाने की चिंता हैं जो अनौखी हैं। तब रानी ने उन्हें पुरी घटना कह सुनाई। तब संत बोले यही चिंता इनके अस्वस्थ रहने का कारण हैं उन्होंने राजा से कहा महाराज ऐसा कोई राज्य नहीं हैं जैसा आप वर्णन करते हैं । महाराज इस राज्य को पाने की लालसा ने आपको रोगी बना दिया जब आपका शरीर ही स्वस्थ नहीं हैं तो यह धन वैभव आपके किस काम का हैं। इसीलिये कहा जाता हैं कि पहला सुख निरोगी काया अतः आप इस लालसा को त्याग दीजिए और जो आपके पास हैं उसी में संतोष करें। राजा को समझ आ चुका था अब उसने उस राज्य को पाने की इच्छा छोड़ दी कुछ समय बाद राजा पुरी तरह स्वस्थ हो गया। तो मित्रों हमें इस कहानी से ये शिक्षा मिलती हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है हमें उसी में संतोष करना चाहिए। तृष्णा एक ऐसा रोग हैं जिसका कोई इलाज नहीं हैं।

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