शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

जा पर कृपा राम की होई Ja Par Kripa Ram ki hoi

जा पर कृपा राम की होई
(रचना: जसवंत सिंह)

जा पर कृपा राम की होई,
ता पर कृपा करें सब कोई।
दुःख मिट जाए, सुख छा जाए,
भवसागर से पार लगाए।

राम का नाम जब जुबां पर आए,
हर संकट पल में मिट जाए।
हरिओम का जाप जो कर ले,
उसके जीवन का अंधेरा हर ले।

जा पर कृपा राम की होई,
वही जग में पूज्य कहाए।
भव बंधन से मुक्त हो जाए,
हर पथ पर विजय वो पाए।

सत्संग में जिसका मन रमता,
भक्ति में जो निशदिन रहता।
वही तो राम का प्रिय कहाए,
संसार में उसका यश छाए।

जा पर कृपा राम की होई,
उसके दुख भी सुख बन जाए।
हर पल हर क्षण राम का सहारा,
उसके जीवन का बने उजियारा।


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रामजी की महिमा

भगवान श्रीराम धर्म, आदर्श और मर्यादा के प्रतीक हैं। उनके जीवन से हमें सत्य, धर्म और कर्तव्य पालन की प्रेरणा मिलती है। रामजी का चरित्र हमें सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी संयम, धैर्य और करुणा बनाए रखना चाहिए। उन्होंने राक्षसों का संहार करके अधर्म का नाश किया और धर्म की स्थापना की।

राम नाम का स्मरण मात्र से भक्तों के पाप धुल जाते हैं और मन शुद्ध हो जाता है। रामजी का जीवन हर युग में आदर्श रहा है। वनवास, सीता की खोज और रावण के वध के दौरान उनके हर कृत्य में सच्चाई और न्याय की झलक मिलती है। उनके चरणों में शरण लेने वाले हर भक्त का उद्धार होता है। रामजी की महिमा का बखान शब्दों में सीमित नहीं हो सकता, क्योंकि उनका व्यक्तित्व और करुणा अनंत हैं।


बुधवार, 15 जनवरी 2025

शिवजी की स्तुति और "ॐ जय ॐकारा" Om Jay Omkara Shiva stuti

नीचे शिवजी की स्तुति और "ॐ जय ॐकारा" के बोल हिंदी में दिए गए हैं। यह एक अद्वितीय और विस्तार से लिखा हुआ पाठ है, जो 1100 शब्दों के करीब है।

ॐ जय ॐकारा

ॐ जय ॐकारा, स्वामी जय ॐकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर।
एक रूप तुम्‍हारा, स्वामी जय ॐकारा।

ॐ जय ॐकारा, स्वामी जय ॐकारा।

अकाल मूर्ति अनंता, अकाल मूर्ति अनंता, अजय है जग-विस्तारा।
स्वामी जय ॐकारा।
ॐ जय ॐकारा, स्वामी जय ॐकारा।

शिव योगी तुम्ही हो, शिव योगी तुम्ही हो, शम्भु तुम्ही हो दाता।
स्वामी जय ॐकारा।
ॐ जय ॐकारा, स्वामी जय ॐकारा।

जग में तेरा है वंदन, जग में तेरा है वंदन, करे सदा ये नर-नारी।
स्वामी जय ॐकारा।
ॐ जय ॐकारा, स्वामी जय ॐकारा।

नमो नमः शिव शंकर, नमो नमः शिव शंकर, बोलो त्रिपुरारी।
स्वामी जय ॐकारा।
ॐ जय ॐकारा, स्वामी जय ॐकारा।

तुम ही हो सब के स्वामी, तुम ही हो सब के स्वामी, पार करो भव-पारा।
स्वामी जय ॐकारा।
ॐ जय ॐकारा, स्वामी जय ॐकारा।


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शिवजी की स्तुति

हे महादेव, जग के पालनहार,
तुम ही हो सृष्टि के संहार।
हे त्रिनेत्रधारी, चंद्रमौलि भोलेनाथ,
तुम्हारी महिमा है असीम और विशाल।

गंगा तुमसे निकली, तुम्हारे जटाजूट से,
तुम्हारी मृदुता और कठोरता दोनों हैं विशेष।
तुम्हारे डमरू की ध्वनि में सृष्टि की उत्पत्ति है,
और तुम्हारी तपस्या में समाहित है शक्ति की ऊर्जा।

हे कैलाशपति, तुम्हारी कृपा के बिना,
जीवन अधूरा और अपूर्ण सा लगता है।
तुम्हारे वचनों में शांति और तपस्या है,
और तुम्हारी भक्ति में ही सच्चा सुख है।

तुम हो आदि और अनंत,
सत्य, शिव और सुंदर।
तुम्हारे भक्तगण गाते हैं:
"हर हर महादेव!"
और हर कण में तुम्हारी उपस्थिति को पाते हैं।

तुम्हारे त्रिशूल की धार से,
अधर्म का नाश होता है।
और तुम्हारे नागराज से,
जीवन का संदेश मिलता है।

हे नटराज, तुम्हारी नृत्य मुद्राएं,
जीवन के चक्र का प्रतीक हैं।
सृष्टि का आरंभ और अंत,
दोनों तुम्हारे नृत्य से जुड़े हैं।

तुम्हारे भस्म और रुद्राक्ष से,
भक्तों को शक्ति और शांति मिलती है।
तुम्हारी कृपा से भक्तों के दुःख मिट जाते हैं,
और जीवन में नई रोशनी आती है।

तुम्हारी तपस्या में जो योगी खो जाता है,
वह सच्चे ज्ञान को प्राप्त कर लेता है।
हे भोलेनाथ, तुम दयालु हो,
और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हो।

तुम्हारे शिवलिंग में सृष्टि का रहस्य है,
और तुम्हारी आराधना में मोक्ष का मार्ग।
तुम्हारे भक्तजन गाते हैं:
"ॐ नमः शिवाय।"
और तुम्हारी महिमा को हर पल याद करते हैं।

हे शिव शंकर, हमें अपनी शरण में लो,
और हमें हर संकट से बचाओ।
तुम्हारी कृपा से ही जीवन सफल होता है,
और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।


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शिव आराधना का महत्व
शिवजी की पूजा और आराधना का महत्व अनन्य है। वे अपने भक्तों को जीवन के हर मोड़ पर सहारा देते हैं। उनका नाम मात्र लेने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं। शिवजी का स्वरूप न केवल विनाशक है, बल्कि सृजन और पालन का भी प्रतीक है। उनके त्रिशूल के तीन शिखर अज्ञान, दुख और अधर्म को खत्म करते हैं। उनकी कृपा से साधक अपने भीतर की अशांति को समाप्त कर, आत्मज्ञान को प्राप्त करता है।

शिवजी का हर पहलू हमें जीवन के गहरे रहस्यों को समझाता है। उनके शिवलिंग की पूजा हमें बताती है कि सृष्टि की उत्पत्ति और उसका अस्तित्व शिव के बिना अधूरा है। वे योग और तपस्या के प्रतीक हैं और हमें सिखाते हैं कि आत्मा की शांति कैसे पाई जा सकती है।

भक्तगण शिवरात्रि, सावन मास, और विशेष अवसरों पर शिवजी की उपासना करते हैं। "ॐ नमः शिवाय" मंत्र शिवजी को प्रसन्न करने का सबसे सरल और प्रभावशाली उपाय है। उनकी पूजा न केवल हमें शांति और सुख देती है, बल्कि हमारे भीतर एक नई ऊर्जा का संचार करती है।

शिवजी को समर्पित यह स्तुति और प्रार्थना हमारे जीवन को धन्य और पवित्र बनाती है। हर भक्त को यह समझना चाहिए कि शिवजी की महिमा अपरंपार है और उनकी उपासना से हमें जीवन के हर मोर्चे पर विजय प्राप्त होती है।

हर हर महादेव!


रविवार, 5 जनवरी 2025

खजुरिया श्याम (khajuriya-shyam) का धाम: आस्था और विश्वास का प्रतीक

खजुरिया श्याम का धाम: आस्था और विश्वास का प्रतीक
राजस्थान, अपने ऐतिहासिक धरोहरों, सांस्कृतिक परंपराओं और धार्मिक स्थलों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है खजुरिया श्याम का धाम, जो भीलवाड़ा जिले के गंगापुर कस्बे से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह धाम न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि दूर-दराज के श्रद्धालुओं के लिए भी आस्था का एक केंद्र बन चुका है। खजुरिया श्याम का यह स्थान उन भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, जो अपने जीवन में सुख-शांति और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए खजुरिया श्याम की शरण में आते हैं।

धाम का इतिहास और महत्व

खजुरिया श्याम के धाम का इतिहास अधिक पुराना तो नहीं है। पर इनकी प्रसिद्घी पिछले दशकों में बढ़ती आई है। इस धाम की स्थापना का कोई निश्चित लिखित प्रमाण नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार, यह स्थान कई वर्षों से धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है। खजुरिया श्याम, सभी मनोकामना  पूर्ण करने वाले माना जाता है, श्रद्धालुओं के लिए सब दुःख दूर कर सुख शांति देने वाले देव के रूप में पूजनीय हैं।

खजुरिया श्याम धाम की विशेषताएँ

1. दर्शन और पूजा-अर्चना
खजुरिया श्याम का मंदिर नहीं है इनकी एक बड़ी प्रतिमा चबूतरे पर स्थापित हैं  जो अपनी भव्यता और सादगी के लिए प्रसिद्ध है। श्रद्धालु इसके दर्शन मात्र से आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। हर शनिवार, यहाँ विशेष पूजा और आरती का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।


2. भक्तों की कामनाओं की पूर्ति
ऐसा कहा जाता है कि जो भी सच्चे मन से खजुरिया श्याम के चरणों में अपनी कामनाएँ रखते हैं, उनकी हर इच्छा पूरी होती है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु विभिन्न प्रकार के मन्नतें मांगते हैं और उनकी पूर्ति होने पर खजुरिया श्याम के चरणों में विशेष भेंट अर्पित करते हैं।

4. सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान
खजुरिया श्याम का धाम न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ समय-समय पर  सत्संग, और प्रवचनों का आयोजन किया जाता है, जो समाज को नैतिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाते हैं।

यहाँ तक पहुँचने के साधन

खजुरिया श्याम का धाम गंगापुर कस्बे से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। भीलवाड़ा से यहाँ तक आने के लिए बस, टैक्सी और निजी वाहन उपलब्ध हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन भीलवाड़ा है, जो देश के अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

धार्मिक महत्व और आस्था का संदेश

खजुरिया श्याम का धाम केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह स्थान आस्था और विश्वास का प्रतीक है। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि ये अपने भक्तों के हर दुख और समस्या को दूर करते हैं। इनकी कृपा से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

प्राकृतिक सुंदरता का आकर्षण

धाम के चारों ओर की प्राकृतिक सुंदरता इसे और भी विशेष बनाती है। धाम के आसपास सराए, चबूतरे बने हुए हैं और शुद्ध वातावरण भक्तों को आत्मिक शांति का अनुभव कराता है। यहाँ आकर श्रद्धालु न केवल आध्यात्मिक बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी तरोताजा महसूस करते हैं।

धाम की ओर बढ़ती श्रद्धालुओं की संख्या

हर शनिवार को खजुरिया श्याम धाम पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा सकती है। भक्त यहाँ खजुरिया धनी के चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। बढ़ती श्रद्धालुओं की संख्या से यह स्पष्ट होता है कि यह स्थान दिनों-दिन अधिक प्रसिद्धि प्राप्त कर रहा है।

धाम से जुड़ी मान्यताएँ और चमत्कार

खजुरिया श्याम के धाम से कई चमत्कारिक कहानियाँ भी जुड़ी हुई हैं। यहाँ के स्थानीय लोग बताते हैं कि जिन भक्तों ने भगवान श्याम के प्रति अपनी सच्ची भक्ति व्यक्त की, उनकी असंभव समस्याएँ भी हल हो गईं। यह विश्वास ही है, जो हर साल लाखों लोगों को इस पवित्र धाम की ओर आकर्षित करता है।
आध्यात्मिक यात्रा का अनूठा अनुभव

खजुरिया श्याम का धाम न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा के रूप में भी बेहद खास है। यहाँ आने वाले भक्त अपनी समस्याओं और चिंताओं को इनके चरणों में छोड़ देते हैं और नए उत्साह के साथ अपने जीवन को फिर से शुरू करने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

निष्कर्ष

खजुरिया श्याम का धाम उन स्थलों में से एक है, जहाँ आकर श्रद्धालु सच्चे अर्थों में शांति और संतोष का अनुभव करते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक महत्व का केंद्र है, बल्कि यह भक्तों के लिए प्रेरणा और आत्मविश्वास का स्रोत भी है। राजस्थान की इस पवित्र भूमि पर स्थित खजुरिया श्याम का धाम हमें यह संदेश देता है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा से हर समस्या का समाधान संभव है।

यदि आप अपने जीवन में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना कर रहे हैं, तो एक बार खजुरिया श्याम के दर्शन अवश्य करें। यहाँ का माहौल, खजुरिया जी की कृपा और श्रद्धालुओं का विश्वास आपको भी अपने जीवन की समस्याओं से लड़ने की शक्ति प्रदान करेगा।


गुरुवार, 8 जून 2023

क्षेमंकरी माता खीमज माता क्षेमकरि khimajmata

क्षेमंकरी खीमज माता

देवी क्षेमंकरी माता का मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर में से एक है यह मंदिर जालौर के भीनमाल नगर में स्थित है माता का मंदिर एक पहाड़ी पर निर्मित है यहाँ सीढ़िया बनी हुई है  मंदिर तक चढ़ कर जाया जाता है  मंदिर तक पहुंचने  के लिए सड़क भी   बनी हुई है क्षेमंकरी माता को  खीमज माता भी कहा जाता है यह सोलंकी राजपूतों की  कुलदेवी है यहाँ सोलंकी राजपूत ( आसोलिया asoliya ) अपनी कुलदेवी के दर्शन करने आते है यहाँ स्थानीय निवासियों के अलावा प्रदेश भर से भी लोग आते रहते है यह मंदिर  राजस्थान के जालोर जिले के भीनमाल में 24.998°N अक्षांश और 72.239°E देशांतर पर स्थित एक [पहाड़] पर स्थित है । यह सुंधा माता मंदिर से 25 किमी दूर है । यहाँ पर यात्रियों के लिए उत्तम व्यवस्थाएं की गयी है यहाँ ठहरने के लिए सराय धर्मशालाएं आदि बानी हुई है भोजन के लिए भोजनालय बने हुए है खीमज माता की आरती सुबह  6 बजे और साय 7 बजे होती है उस कई श्रद्धालु उपस्थित रहते है माता के दर्शनों उत्तम समय रविवार का दिन होता 

त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी। trikal darshi trilok swami lyrics

आज की इस पोस्ट में हम भगवान शिव को प्रसन्न करने वाला एक बेहद मधुर एवं चमत्कारी भजन के बोल प्रस्तुत कर रहे है जो की ॐ नमः शिवाय धारावाहिक से लिया गया है

lord shiva


 त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी 

त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी। 

त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक 

त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक।। 


नृत्य गायन कला के स्वामी 

नृत्य गायन कला के स्वामी। 

हे धर्म पालक अधर्म नाशक

 हे धर्म पालक अधर्म नाशक।। 


त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी।


 है चल अचल में छवि तुम्हारी 

है चल अचल में छवि तुम्हारी। 

तुम अात्मा हो परमात्मा हो।। 

सर्वेश तुम हो करुणेश तुम हो। 

हैं भूल हम सब तुम्ही क्षमा हो।। 


त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी 

त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी। 

त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक 

त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक।। 


त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी। 


है चंद्र मस्तक जटा में गंगा 

है चंद्र मस्तक जटा में गंगा। 

है संगी साथी भव्य निशाचर।। 

है कंठ शोभा सर्पों की माला

त्रिशूल कर में कटीव भंबर।। 


त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी 

त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी। 

त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक 

त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक।। 


त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी। 


अजातशत्रु हो मित्र सबके 

अजातशत्रु हो मित्र सबके । 

पवित्रता के अाधार तुम हो। 

मृत्युंजय तुम हो तुम्ही हो अक्षर 

तुम्ही सनातन ओंकार तुम हो।। 


त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी 

त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी। 


त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक 

त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक।। 


नृत्य गायन कला के स्वामी 

नृत्य गायन कला के स्वामी। 


हे धर्म पालक अधर्म नाशक 

हे धर्म पालक अधर्म नाशक।। 

हे धर्म पालक अधर्म नाशक।।

शिवजी को संहार का देवता कहा जाता है। शिवजी अपने सौम्य मुख और रौद्र रूप दोनों के लिए विख्यात हैं। उन्हें महादेव इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्हें अन्य देवताओं से बढ़कर माना जाता है। शिव सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के अधिपति हैं।  वैसे तो शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन उन्होंने लय और प्रलय दोनों को हमेशा अपने वश में रखा है। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि उनके भक्त हुए हैं। शिव सभी को समान रूप से देखते हैं, इसलिए उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ लोकप्रिय नाम महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चंद्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय [मृत्यु पर विजयी], त्र्यंबक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विश्वधर, नीलकंठ, महाशिव, उमापति [पार्वती के पति], काल भैरव हैं। भूतनाथ, त्रिलोचन [तीन आँखों वाला], शशिभूषण आदि।


भगवान शिव को रुद्र के नाम से जाना जाता है। रुद्र का अर्थ है क्रोध का नाश करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला इसलिए भगवान शिव का स्वरूप कल्याणकारी है। रुद्राष्टाध्यायी के पांचवें अध्याय में भगवान शिव के अनेक रूपों का वर्णन किया गया है। रूद्र देवता को अचल, जंगम, सर्वभौतिक रूप, सभी जातियों, मनुष्यों, देवताओं, जानवरों और पौधों के रूप में मानने से यह सबसे अंतरंग भावना और सर्वोत्तम भावना साबित हुई है।


त्रिदेवों में भगवान शिव को संहार का देवता माना जाता है। शिव अनादि हैं और सृष्टि प्रक्रिया के मूल स्रोत हैं और यही काल महाकाल ज्योतिष का आधार है।

जो शिव और राम के बीच के अंतर को जानता है वह कभी भी भगवान शिव या भगवान राम का प्रिय नहीं हो सकता। शुक्ल यजुर्वेद संहिता के अंतर्गत रूद्र अष्टाध्यायी के अनुसार सूर्य, इन्द्र, विराट पुरुष, हरे वृक्ष, अन्न, जल, वायु और मनुष्य के कल्याण के लिए सभी भगवान शिव के रूप हैं। भगवान सूर्य के रूप में भगवान शिव मनुष्य के कर्मों को ध्यान से देखते हैं और उन्हें वैसा ही फल देते हैं। तात्पर्य यह है कि संपूर्ण ब्रह्मांड शिवमय है। मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार फल मिलता है, अर्थात् भगवान शिव स्वस्थ बुद्धि वालों को वर्षा, अन्न, धन, स्वास्थ्य, सुख आदि के रूप में जल प्रदान करते हैं और शिवजी उनके लिए रोग, दु:ख और मृत्यु आदि का भी शासन करते हैं। कमजोर बुद्धि के साथ। 

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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा ( pagal soch raha ye lag ka mara soch raha )

भगवान श्री कृष्ण से सुदामा जी मिलने जाते है तब उनकी पत्नी श्री कृष्णा जी के लिए चावल की  पोटली बांध देती है 

सुदामा जी जब श्री कृष्णा जी से मिलते तो वे उनके महल की भव्यता को देख कर और उनके अपार धन धन सम्पदा वैभव को देख सोचते है की  जिसके पास इतना धन वैभव जिसके पास अन्न धन की अपर सम्पदा है उसको मेरे इस चावल के तुच्छ दान से क्या फर्क पड़ने वाला है ऐसा सोच सोच वह लज्जित हुए जा रहे है सुदामा



   त्रिभुवन की जहाँ सम्पदा,अन्न धन के भण्डार

त्रिभुवन की जहाँ सम्पदा,अन्न धन के भण्डार

वहाँ स्थान कहाँ पाएंगे मेरे चावल चार  

पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा 

नारायण का वास जहाँ, जहाँ लक्ष्मी का धाम 

वहाँ सुदामा दीन के तंदुल का क्या काम 

पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा 

क्या सोचेंगी रानियाँ, क्या बोलेंगे दास

क्या सोचेंगी रानियाँ, क्या बोलेंगे दास

सहना होगा दीन को किस किस उपहास 

पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा 


pagla soch raha

निर्माता: रामानंद सागर/सुभाष सागर/प्रेण सागर

निर्देशक: रामानंद सागर / आनंद सागर / मोती सागर

मुख्य सहायक निर्देशक: योगी योगिन्दर

सहायक निर्देशक: राजेंद्र शुक्ला / श्रीधर जेट्टी / ज्योति सागर

पटकथा और संवाद: रामानंद सागर

कैमरा: अविनाश सतोस्कर

संगीत: रवींद्र जैन

गीतकार: रवींद्र जैन

पार्श्व गायक: सुरेश वाडकर / हेमलता / रवींद्र जैन / अरविंदर सिंह / सुशील

संपादक: गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर मिश्रा / सहदेव

बुधवार, 17 अगस्त 2022

हनुमान चालीसा Hanuman Chalisa

हनुमान चालीसा Hanuman Chalisa

 हनुमान चालीसा अवधी में लिखी गई एक काव्य कृति है, जिसमें भगवान श्री राम के एक महान भक्त हनुमान जी के गुणों और कार्यों का चालीस चौगुनी वर्णन किया गया है। यह बहुत ही छोटी रचना है जिसमें पवनपुत्र श्री हनुमान जी की सुन्दर स्तुति की गई है। इसमें बजरंगबली बाबा की भावपूर्ण वंदना ही नहीं भगवान श्री राम के व्यक्तित्व को भी सरल शब्दों में उकेरा गया है। चालीसा शब्द का अर्थ है 'चालीस' (40) क्योंकि इस भजन में 40 श्लोक हैं (परिचय के 2 दोहे छोड़कर)। हनुमान चालीसा उनके भक्तों द्वारा भगवान हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली प्रार्थना है जिसमें 40 पंक्तियाँ हैं इसलिए इस प्रार्थना को हनुमान चालीसा कहा जाता है। यह हनुमान चालीसा तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई है जो बहुत शक्तिशाली मानी जाती है।

hanuman chalisa


इसके लेखक गोस्वामी तुलसीदास हैं।


हालांकि यह पूरे भारत में लोकप्रिय है, लेकिन विशेष रूप से उत्तर भारत में यह बहुत प्रसिद्ध और लोकप्रिय है। लगभग सभी हिंदुओं के पास यह दिल से है। सनातन धर्म में हनुमान जी को वीरता, भक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। शिव के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी को बजरंगबली, पवनपुत्र, मारुति नंदन, केसरी नंदन, महावीर आदि नामों से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी अमर हैं। प्रतिदिन हनुमान जी का स्मरण और उनके मंत्रों का जाप करने से मनुष्य के सारे भय दूर हो जाते हैं। कहते हैं हनुमान चालीसा के पाठ से भय दूर होता है, क्लेश दूर होते हैं. इसके गम्भीर भावों पर विचार करने से श्रेष्ठ ज्ञान से मन में भक्ति जागृत होती है।

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥१॥
महाबीर विक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा ॥२॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥३॥
विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया ॥४॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे ॥५॥
लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥६॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा ॥७॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥८॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥९॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥१०॥
राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहू को डरना ॥११॥
आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक ते काँपै
भूत पिशाच निकट नहि आवै
महाबीर जब नाम सुनावै ॥१२॥
नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा
संकट ते हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥१३॥
सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥१४॥
चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे ॥१५॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा
सादर हे रघुपति के दासा ॥१६॥
तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै
अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥१७॥
और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥१८॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥१९॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥२०॥


दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

मंगलवार, 1 जून 2021

तुलसी विवाह की कथा Tulsi Ki Katha

तुलसी विवाह Tulsi Ki Katha 
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। यह एकादशी दीपावली के 11 दिन बाद आती है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का पर्व भी मनाया जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के साथ इसी तिथि को होता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की नींद के बाद जागते हैं। चार महीने के अंतराल के बाद इस तारीख से हिंदुओं में शादियां शुरू हो जाती हैं। तुलसी विवाह के दिन व्रत रखने का बहुत महत्व है.

तुलसी विवाह की कहानी
प्राचीन काल में जालंधर नाम के एक राक्षस ने चारों ओर जबरदस्त हंगामा किया था। वह बहुत वीर और पराक्रमी था। उनकी वीरता का रहस्य उनकी पत्नी वृंदा का सदाचारी धर्म था। उसी के प्रभाव में वह विजयी रहा। जालंधर की गड़बड़ी से भक्त, देवता भगवान विष्णु के पास गए और सुरक्षा का अनुरोध किया। उनकी प्रार्थना सुनकर, भगवान विष्णु ने वृंदा के पुण्य धर्म को भंग करने का फैसला किया। उसने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा को छल से छुआ। वृंदा का पति जालंधर देवताओं से पराक्रम से लड़ रहा था, लेकिन वृंदा के मारते ही उसकी पवित्रता नष्ट हो गई। वृंदा की साधुता भंग होते ही जालंधर का सिर उनके आंगन में गिर पड़ा। जब वृंदा ने यह देखा, तो वह क्रोधित हो गया और जानना चाहता था कि वह कौन है जिसने उसे छुआ था। सामने विष्णु खड़े थे। उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया, "जिस प्रकार तुमने छल से मेरे साथ विश्वासघात किया है, उसी प्रकार तुम्हारी पत्नी का भी छल से अपहरण होगा और तुम भी स्त्रियों के वियोग को सहने के लिए मृत्युलोक में जन्मोगे।" इतना कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। वृंदा के श्राप के कारण भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उन्हें सीता का वियोग सहना पड़ा था। तुलसी के पौधे का जन्म उस स्थान पर हुआ था जहां वृंदा सती थी।
एक अन्य कहानी में शुरुआत भी कुछ ऐसी ही है, लेकिन इस कहानी में वृंदा ने विष्णु जी को श्राप दिया, "तूने मेरी पवित्रता भंग की है। इस पत्थर को शालिग्राम कहा जाता था। विष्णु ने कहा, "हे वृंदा! मैं आपकी पवित्रता का सम्मान करता हूं लेकिन आप हमेशा तुलसी के रूप में मेरे साथ रहेंगे। जो व्यक्ति कार्तिक एकादशी के दिन मुझसे विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी।" तुलसी के बिना शालिग्राम या विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी के विवाह को भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है।

पूजा करने के तरीके
तुलसी विवाह के दौरान तुलसी के पौधे के साथ विष्णु की एक मूर्ति भी स्थापित की जाती है। तुलसी के पौधे और विष्णु की मूर्ति को पीले वस्त्रों से सजाया जाता है। इसके बाद तुलसी के बर्तन को गेरू से सजाया जाता है। मटके के चारों ओर एक विवाह मंडप बनाया गया है। इसके बाद बर्तन को कपड़े से सजाया जाता है और लाल चूड़ी पहनकर और बिंदी आदि लगाकर सजाया जाता है। इसके साथ टीका लगाने के लिए तुलसी के सामने दक्षिणा के रूप में नारियल रखा जाता है। भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा की जाती है। इसके बाद आरती की जाती है। इसी के साथ विवाह संपन्न होता है। लोग शादी के समय ओम तुलसी नमः का जाप करते रहते हैं। जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं वे इस दिन भोजन नहीं करते हैं।

शनिवार, 24 अप्रैल 2021

मैं तो राम ही राम पुकारू Me To Ram Hi Ram Pukaru

 
me to ram hi ram pukaru lyrics

श्री राम जय जय राम श्री राम जय जय राम मैं तो राम ही राम पुकारू राम नहीं मोरी सुध लीनी मैं कब से राह निहारु

 बटेऊ जाने वाले श्री राम प्रभु के रखवाले तू राम नाम का रस पीले तन मन की प्यास बुझा ले 

कपि के कानों में पड़ा राम नाम श्री राम उत्तरे हनुमत जान कर राम भक्त का धाम 
संवाद

मेघनाथ ने शक्ति मारी है तेरा नाम बड़ा दुखारी है होंओ.....  तुझे एक वेद ने पटाया है तू संजीवनी लेने आया है

किथे से आवे किथे को जावे किथे से आवे किथे को जावे बाबा ने शब डेरा रे 

जानू है बड़ी दूर बटेऊ करले रेन बसेरा रे जानू है बड़ी दूर बटेऊ करले रेन बसेरा रे 

यही भगवान की आज्ञा है तू आज यहीं विश्राम करे तू क्यों चिंता करता है जो करना है सो राम करे

जो करना है सो राम करें 

राम लखन के जीवन में कभी होगा नहीं अंधेरा रे जानू है बड़ी दूर बटेऊ करले रेन बसेरा रे

जानू है बड़ी दूर बटेऊ करले रेन बसेरा रे

तुझे भूख प्यास नहीं लागे मैं ऐसा मंत्र बता दूंगा तुझे जिस पर्वत पर जाना मैं पल भर में पहुंचा दूंगा  

स्नान ध्यान करके तू आजा स्नान ध्यान करके तू आजा है बनालू तोहे चेरा रे

जानु है बड़ी दूर बटेऊ करले रेन बसेरा रे जानू है बड़ी दूर बटेऊ करले रेन बसेरा रे 

श्री राम जय जय राम श्री राम जय जय राम मैं तो राम ही राम पुकारू राम नहीं सुधरी नी में कब से राह निहारू

Ramayana

bateu jane wale jano hai badi dur bateu lyrics

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

महामृत्युंजय मंत्र का क्या लाभ है? mahamrityunjay mantra in hindi lyrics

Om nahah shivay

 महामृत्युंजय मंत्र
या महामृत्युंजय मंत्र ("मृत्यु को जीतने के लिए महान मंत्र"), जिसे त्र्यंबकम् मंत्र के रूप में भी जाना जाता है, भगवान शिव की स्तुति करते हुए, यजुर्वेद के रुद्र अध्याय में है। इस मंत्र में, शिव को 'मृत्यु के विजेता' के रूप में वर्णित किया गया है। यह गायत्री मंत्र के बराबर हिंदू धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मंत्र है।


इस मंत्र के कई नाम और रूप हैं। शिव के उग्र पहलू की ओर इशारा करते हुए इसे रुद्र मंत्र कहा जाता है; त्र्यंबकम मंत्र शिव की तीन आँखों की ओर इशारा करता है और कभी-कभी इसे मृत-संजीवनी मंत्र के रूप में संदर्भित किया जाता है क्योंकि यह प्राचीन ऋषि शुक्र को कठोर तपस्या पूरी करने के लिए दी जाने वाली "जीवन-बहाली विद्या" का एक घटक है।


ऋषि-ऋषियों ने महा मृत्युंजय मंत्र को वेद का हृदय कहा है। चिंतन और मनन के लिए उपयोग किए जाने वाले कई मंत्रों में, इस मंत्र में गायत्री मंत्र के साथ सर्वोच्च स्थान है।

त्र्यंबकम = त्रि-नेत्र (कर्मकार), भगवान जो तीनों समय में हमारी रक्षा करते हैं

यजामहे = हम पूजा करते हैं, सम्मान करते हैं, हमारी श्रद्धा है

सुगन्धिम् = सुगन्धित, सुगन्धित (अभियोगात्मक)

पुष्टि: = एक अच्छी तरह से खिलाया स्थिति, समृद्ध, समृद्ध जीवन की पुष्टि

वर्धनम् = जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) एक बूढ़ा व्यक्ति; एक खुशमिजाज माली जो खुशी, खुशी और स्वास्थ्य प्रदान करता है

उर्वारुकम = खीरा

इव = like, like this

बंधन = तना (लौकी का); (पाँचवाँ तना "तने से" - वास्तव में समाप्ति-डी से अधिक लंबा है) जिसे संधि के द्वारा n / a-nushava में बदल दिया जाता है।

मृत्यु: = * मृत्यु: = मृत्यु से

मुक्त = हमें मुक्त करो, हमें मुक्त करो

मा = नहीं, वंचित होना

अमृतात् = अमरता, मोक्ष की खुशी के साथ

~ इस महान महीने का लाभ इस प्रकार है -


धन प्राप्त करें

.क्या आप यह सोचकर पढ़ते हैं कि काम सफल है

परिवार में खुशहाली बनी रहती है

आप जीवन में आगे बढ़ते रहें


mahamrityunjay mantra in hindi lyrics

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥ 

मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

राम कहानी सुनो रे राम कहानी Ram Kahani Suno Re Ram Kahani Lyrics

Ram Kahani Suno re Ram Kahani Lyrics 

राम कहानी सुनो रे......... राम कहानी। राम कहानी सुनो रे राम कहानी ।
राम कहानी सुनो रे.....राम कहानी। राम कहानी सुनो रे राम कहानी । 
कहत सुनत आवे.. आँखियों में पानी
 राम कहानी, सुनो रे राम कहानी।  
श्री राम जय राम जय जय राम, 
श्री राम जय राम जय जय राम। 
दशरत के राज दुलारे कौशल्या की आँख के तारे।दशरत के राज दुलारे कौशल्या की आँख के तारे ।। ये सुर्य वंश का सूरज ये रघुकुल के उजियारे। 
राजीव नयन बोले....  राजीव नयन बोले मधु भरी बानी।।
राम कहानी सुनो श्री राम कहानी। 
राम कहानी सुनो रे......... राम कहानी।।
शिव धनुष भंग करके ले आए सीता वर के।
घर त्याग भये वनवासी, पित आज्ञा सिर धर के।। लखन सिया ले संग....... लखन सिया ले संग छोड़ी रजधानी।।
राम कहानी सुनो रे......... राम कहानी।।
खल भेष भिक्षु का धर के भिक्षा का आग्रह करके, खल भेष भिक्षु का धर के भिक्षा का आग्रह करके। उस जनकसुता सिता को छल बल से ले गया हर के।। 
बड़ा दुख पावे.... बड़ा दुख पावे  राजा रामजी की रानी....
राम कहानी सुनो रे राम कहानी..... 
श्री राम ने मोहे पठायो, मैं रामदूत बन आयो.. श्री राम ने मोहे पठायो, मैं रामदूत बन आयो 
सीता माँ की सेवा में श्री रघुवर को संदेशों लायो, और संग लायो प्रभु मुद्रिका निशानी............
राम कहानी सुनो रे......... राम कहानी। राम कहानी सुनो रे राम कहानी । 
राम कहानी सुनो रे.....राम कहानी। राम कहानी सुनो रे राम कहानी । कहत सुनत आवे.. आँखियों में पानी।। 

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

शालीग्राम पत्थर क्या है shaligram patthar kya he

Shaligram Patthar Kya Hai
शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जिसका उपयोग भगवान के प्रतिनिधि के रूप में आह्वान करने के लिए किया जाता है।  शालीग्राम को आमतौर पर नदी के तल से या किनारे से एकत्र किया जाता है।  शिव के भक्त पूजा करने के लिए शिव लिंग के रूप में लगभग एक गोल या अंडाकार शालीग्राम का उपयोग करते हैं।
  

  शालीग्राम

  वैष्णव एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग का अमोनॉइड Ammonoid जीवाश्म का उपयोग करते हैं जो विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में पवित्र गंडकी नदी में पाया जाता है।

  शालीग्राम को अक्सर 'शिला' कहा जाता है।  शिला शालीग्राम का एक छोटा नाम है जिसका अर्थ है "पत्थर"।  शालीग्राम विष्णु का कम जाना-पहचाना नाम है।  इस नाम की उत्पत्ति के साक्ष्य नेपाल के एक सुदूर गाँव में पाए जाते हैं जहाँ विष्णु को शालीग्रामम् के नाम से भी जाना जाता है।  हिंदू धर्म में, शालीग्राम को सालगराम के रूप में जाना जाता है।  शालीग्राम सालग्राम नामक एक गाँव से भी जुड़ा हुआ है जो गंडकी नदी के किनारे पर स्थित है और यह यहाँ से भी पाया जाता है।


  पद्मपुराण के अनुसार - गंडकी अर्थात् नारायणी नदी के एक राज्य में शालीग्राम स्टाल नामक एक महत्वपूर्ण स्थान है;  वहां से उत्पन्न होने वाले पत्थर को शालीग्राम कहा जाता है।  शालीग्राम शिला के स्पर्श से लाखों जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।  फिर अगर इसकी पूजा की जाती है, तो इसके फल के बारे में क्या कहना है;  वह ईश्वर के निकट आने वाला है।  कई जन्मों के पुण्यों से, यदि श्रीकृष्ण गोपाल के चिन्ह के साथ श्रीकृष्ण को प्राप्त होते हैं, तो व्यक्ति की पूजा से मनुष्य का पुनर्जन्म समाप्त हो जाएगा।  पहले शालीग्राम-सिला का परीक्षण करना चाहिए;  अगर यह काला और चिकना है तो एकदम सही है।  यदि उसका शरीर कम है, तो उसे मध्य श्रेणी में माना जाता है।  और अगर इसमें किसी अन्य रंग का मिश्रण है, तो यह मिश्रित फल देगा।  जिस प्रकार लकड़ी के भीतर छिपी हुई अग्नि हमेशा जप द्वारा प्रकट होती है, उसी प्रकार, भगवान विष्णु को विशेष रूप से शालिग्राम शिला में तब भी व्यक्त किया जाता है, जब वह हर जगह फैल जाती है।  द्वारका के रॉक-कट गोमती चक्र के साथ बारह शालीग्राम मूर्तियों की पूजा करने वाला व्यक्ति वैकुंठ लोक में प्रतिष्ठित होता है।  जो व्यक्ति शालिग्राम-शिला के अंदर गुफा में जाता है, उसके पूर्वज संतुष्ट होते हैं और चक्र के अंत तक स्वर्ग में रहते हैं।  जहाँ द्वारकापुरी की चट्टान - अर्थात गोमती चक्र निवास करती है, उस स्थान को वैकुण्ठ लोक माना जाता है;  वहां जो आदमी मरा वह विष्णुधाम चला गया।  जो लोग शालीग्राम-शिला की कीमत लगाते हैं, जो बेचते हैं, जो बिक्री को मंजूरी देते हैं, और जो कीमत का परीक्षण और समर्थन करते हैं, वे सभी नरक में गिर जाते हैं।  इसीलिए शालीग्राम शिला और गोमती चक्र का क्रय-विक्रय छोड़ देना चाहिए।  शालीग्राम - भगवान शालिग्राम स्थल से प्रकट हुए और द्वारका से गोमती चक्र प्रकट हुआ - इन दोनों देवताओं के उद्धार में कोई संदेह नहीं है जहां संभोग होता है।  द्वारका से गोमती चक्र प्रकट होने के साथ, कई चक्रों द्वारा चिह्नित और चक्रसाना-चट्टान के आकार का, भगवान शालीग्राम निरंजन भगवान की एकमात्र छवि है।  ओंकार रूप और नित्यानंद रूप शालीग्राम को नमस्कार है।

  शालिग्राम का रूप - शालिग्राम-शिला, जिसके द्वार-स्थान पर दो समीपवर्ती वृत्त हैं, जो शुक्ल वर्ण की रेखा से चिह्नित हैं और सुंदर दिखते हैं, को भगवान श्री गदाधर का रूप माना जाना चाहिए।  कनेक्टिंग रॉड में दो सन्निहित वृत्त, एक लाल रेखा और एक मोटा पूर्वकाल भाग होता है।  प्रद्युम्न के रूप में कुछ पीलापन है और उसमें चक्र का चिह्न सूक्ष्म है।  अनिरुद्ध की मूर्ति गोल है और उसके भीतरी भाग में एक गहरा और चौड़ा छेद है;  इसके अलावा, यह नीली रेखाओं और द्वार में तीन लाइनों के साथ भी कवर किया गया है।  भगवान नारायण श्याम वर्ण के हैं, उनके मध्य भाग में गदा के आकार की रेखा है और उनकी नाभि-कमल बहुत ऊँची है।  भगवान नरसिंह की मूर्ति चक्र का स्थूल प्रतीक है, उनका पात्र कपिल है और वे तीन या पांच बिंदुओं से युक्त हैं।  ब्रह्मचारी के लिए उनकी पूजा निर्धारित है।  वह भक्तों के रक्षक हैं।  शालिग्राम-सिला जिसमें दो चक्रों के चिन्ह विषम अर्थ में स्थित हैं, में तीन लिंग हैं और तीन रेखाएँ दिखाई देती हैं;  वह वराह भगवान का रूप है, उसका चरित्र इंडिगो है और आकार सकल है।  भगवान वराह भी सभी के रक्षक हैं।  कच्छप की मूर्ति काले रंग की है।  इसका आकार पानी के भँवर की तरह गोल है।  इसमें हॉटस्पॉट्स के चिन्ह दिखाई देते हैं और इसकी सतह का रंग सफेद होता है।  श्रीधर की मूर्ति में पांच रेखाएँ हैं, वनमाली के रूप में एक गदा चिन्ह है।  गोल आकार, बीच में चक्र का प्रतीक और नीलवर्ण, वामन मूर्ति की पहचान है।  जिसमें साँप-शरीर की कई प्रकार की मूर्तियाँ और चिन्ह हैं, यह भगवान की मूर्ति है।  दामोदर की मूर्ति विशाल और नीलवर्ण की है।  इसके मध्य भाग में चक्र का चिन्ह है।  भगवान दामोदर इसे नीले चिन्ह से जोड़कर दुनिया की रक्षा करते हैं।  शालि़ग्राम, जिसका रंग लाल है, और जिसमें एक लंबी और लंबी रेखा, छिद्र, एक चक्र और कमल आदि हैं, को ब्रह्मा की मूर्ति माना जाना चाहिए।  जिसमें एक बड़ा छेद है, स्थूल चक्र और कृष्ण वर्ण का चिन्ह, यह श्री कृष्ण का रूप है।  उसे बिंदु के रूप में और निरर्थक के रूप में देखा जाता है।  हयाग्रीव की मूर्ति एक मनके के समान है और इसमें पाँच रेखाएँ हैं।  भगवान वैकुंठ में कौस्तुभ मणि है।  उनकी मूर्ति बहुत साफ दिखती है।  यह एक चक्र द्वारा चिह्नित है और काले रंग का है।  मत्स्य भगवान की मूर्ति बड़े आकार के कमल की है।  इसका रंग सफेद है और इसमें हार की रेखा देखी गई है।  शालिग्राम जिसका पात्र श्याम है, जिसके दक्षिण में एक रेखा दिखाई देती है और जिसके तीन चक्रों का प्रतीक है, भगवान श्री रामचंद्रजी का रूप है, वह सभी का रक्षक है।  भगवान गदाधर द्वारकापुरी में शालिग्राम के रूप में।

  भगवान गदाधर को एक चक्र से चिह्नित किया गया है।  दो चक्रों के साथ लक्ष्मीनारायण, तीनों के साथ त्रिविक्रम, चतुर्वेद चार, पांचों के साथ वासुदेव, छह के साथ प्रद्युम्न, सात के साथ शंकर, आठ के साथ पुरुषोत्तम, दस के साथ दशावतार, ग्यारह चक्रों के साथ अनिरुद्ध और बारह चक्रों के साथ द्वैतमा।  रक्षा करना।  इस चक्र चिन्ह से अधिक धारण करने वाले भगवान का नाम अनन्त है।

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

ईश्वर की सुंदर रचना हैं माँ ( कविता ) kavita ma par

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका इस वेबसाइट पर। दोस्तों आज मैं आपके लिए लेकर आया हूँ एक छोटी सी कविता, जो की एक माँ पर आधारित हैं।

ईश्वर की सुंदर रचना हैं माँ, 
मेरा तो ईश्वर ही तु माँ ।
त्याग, क्षमा,ममता की मूरत माँ, 
अम्बा, काली, दुर्गा तु माँ।
 उँगली पकड़ कर चलना सिखाया, 
हाथ छोड़कर लड़ना सिखाया। 
ईश्वर की सुंदर रचना हैं माँ, 
मेरा तो ईश्वर ही हैं तु माँ। 
माँ तु वृक्ष छायादार, 
मैं हूँ तेरी ही एक शाख।
तुझसे जुड़ा मेरा जीवन माँ, 
बिन तेरे मृत हूँ मैं माँ। 
तु अनपढ़ ज्ञानी हैं माँ, 
मैं पढा़-लिखा अज्ञानी हूँ माँ। 
सारे रिश्ते-नाते झूठे,
तेरा आँचल ही है सच्चा।
माँ के चरणों में हैं स्वर्ग सा सुख,
माँ के बिन स्वर्ग भी हैं शुन्य। 
तु हैं एक किताब, 
तेरा एक पन्ना हूँ मैं माँ। 
तु पेड़,
तेरा एक पत्ता मैं माँ। 
तु आँसमा,
तेरा एक तारा मैं माँ। 
ईश्वर की सुंदर रचना तु माँ, 
मेरा तो ईश्वर ही तु माँ। 
 
तो दोस्तों आशा करता हूँ कि आपको ये कविता पसंद आई होगी। 

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

एक नई दिवाली आई हैं कविता ek nai deewali aai hai rachana

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका इस वेबसाइट पर। दोस्तों आज जहाँ एक ओर  हमारा देश पुरे विश्व सहित कोरोना वैश्वीक महामारी से झुझ रहा हैं ,वहीं दुसरी ओर हमारे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा प्रभु श्री राम के अयोध्या राम मंदिर का शिलान्यास किया गया, इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम आपके लिए एक कविता लाए है 

।। श्री राम लला की जय ।।

  एक नई दिवाली आई है
 मेरे रामलला को लाई है 

एक नया त्रेता युग आया है
अवध राम को लाया है 

कृपा राम की होगी अब
न रावण पैदा होंगे अब
 
हे रामलला तुम रक्षा करना 
इन विलासी शैतानों से यह धरती मां घबराई है 

एक नई दिवाली आई है

 मेरे रामलला को लाई है 
राम राज फिर होगा अब
 राम अवध में आए अब 

श्री रघुवीर हमारी रक्षा करना इन भयंकर रोगों से बड़े समय से सुख न देखा इन भयंकर रोगों से

 एक नई दिवाली आई है 
रामलला को लाई है


                 ।। जय श्री राम 

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

हनुमान जी को प्रसन्न करने वाला बजरंग बाण Bajrang Ban Lyrics

बजरंग बाण के द्वारा हनुमानजी की स्तुति की जाती हैं,जिसके प्रभाव से मनुष्य के जीवन में आई परेशानी दुर होती हैं।


hanuman

 ''दोहा "

"निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

"चौपाई"

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु विनय हमारी।।

जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।

जैसे कूदि सिन्धु के पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।।

बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जम कातर तोरा।।

अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।।

लाह समान लंक जरि गई। जय जय जय धुनि सुरपुर नभ भई।।

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।

जय जय लखन प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।।

जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।।

जय हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिंं मारु बज्र की कीले।।

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।।

ऊँकार हुंकार प्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।

सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के।।

जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।

वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।

पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।

बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।।

इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।।

जनकसुता हरिदास कहावौ। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।

जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।

चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।

उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।

ॐ चं चं चं चं चपत चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।

ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।

अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो।।

यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै।।

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।

यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत प्रेत सब कांपै।।

धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा।।

"दोहा"

प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।।

रविवार, 12 अप्रैल 2020

जिनपर कृपा राम करे वो पत्थर भी तीर जाते हैं lyrics Jin Par Kirpa Ram Kare Lyrics

जिनपर कृपा राम करे वो पत्थर भी तीर जाते हैं

Jin Par Kirpa Ram Kare

यह गीत रामायण के उस अंक का हैं जब समुद्र देव के कहने पर नल और नील द्वारा समुद्र पर सेतू निर्माण आरंभ होता हैं। उस समय हनुमान जी हर पत्थर पर राम नाम लिख समुद्र में डालते हैं।
श्री रघुवीर प्रताप ते, सिन्धु तरे पासाण 
देवती मन्द जो राम तSज, भजहीं जाए प्रभु आन 
राम नाम आधार जिन्हें राम नाम आधार जिन्हें
वो जल में राह बनाते हैं
जिनपर कृपा राम करे वो पत्थर भी तीर जाते हैं
जिनपर कृपा राम करे वो पत्थर भी तीर जाते हैं
लक्ष्य राम जी, सिद्धी राम जी
राम ही राह बनाई लक्ष्य राम जी, सिद्धी राम जी
राम ही राह बनाई
राम कर्म हैं, राम हैं कर्ता
राम की सकल बड़ाई राम कर्म हैं, राम हैं कर्ता
राम की सकल बड़ाई
राम काम करने वालों में राम की शक्ति समाई
पृथक-पृथक नामों से सारे काम करे रघुराई
भक्त परायण निज भक्तों को सारा श्रेय दिलाते हैं
जिनपर कृपा राम करे वो पत्थर भी तीर जाते हैं
  घट-घट बस के, आप ही अपना
नाम रटा देते हैं -घट-घट बस के, आप ही अपना
नाम रटा देते हैं 
हर कार्य में, निज भक्तों का
हाथ बटा देते हैं -हर कार्य में, निज भक्तों का
हाथ बटा देते हैं
बाधाओं के सारे पत्थर राम हटा देते हैं
अपने ऊपर लेकर उनका भार घटा देते हैं
पत्थर क्या प्रभु तीन लोक का सारा भार उठाते हैं
जिनपर कृपा राम करे वो पत्थर भी तीर जाते हैं
॥ जय श्री राम

बुधवार, 25 मार्च 2020

महाभारत का वो दृश्य Mahabharat katha

एक सामयिक विचार:- corona virus पर

महाभारत युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य के धोखे से मारे जाने पर अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हो गया।
 उसने पांडव सेना पर एक बहुत ही भयानक अस्त्र "नारायण अस्त्र" छोड़ दिया।
 इसका कोई भी प्रतिकार नहीं कर सकता था।
 यह जिन लोगों के हाथ में हथियार हो और लड़ने के लिए कोशिश करता दिखे उस पर अग्नि बरसाता था और तुरंत नष्ट कर देता था।

 श्रीकृष्ण जी ने सेना को अपने अपने अस्त्र शस्त्र  छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर खड़े रहने का आदेश दिया।
 मन में युद्ध करने का विचार न लाएं, यह उन्हें भी पहचान कर नष्ट कर देता है।
 नारायण अस्त्र धीरे धीरे  अपना समय समाप्त होने पर शांत हो गया।
 इस तरह पांडव सेना की रक्षा हो गयी।

 इस कथा प्रसंग का औचित्य समझें?
 हर जगह लड़ाई सफल नहीं होती।
 प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए हमें भी कुछ समय के लिए सारे काम छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर, मन में सुविचार रख कर एक जगह ठहर जाना चाहिए। तभी हम इसके कहर से बचे रह पाएंगे।
 कोरोना भी अपनी  समयावधि पूरी करके शांत हो जाएगा।
 श्रीकृष्ण जी का बताया हुआ उपाय है, यह व्यर्थ नहीं जाएगा ।

सोमवार, 20 जनवरी 2020

रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र shiv tandav strot

shiv tandav

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥


जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥


धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥


जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥


सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥


ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥


करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥


नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥


प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥


अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥


जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥


दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥


कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥


इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनांं सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥


पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥


॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥


भावार्थ


जिन भगवान  शंकर जी की सघन, वारणूपी जटा से प्रवाहित हो गंगा जी की धारायं उनके कंठ को प्रक्षालित होती हैं, जिनके गले में बड़े और लम्बे नागों की मालाएं हैं, और शिव शंकर  डम-डम डम बजाते हुए प्रचंड तांडव करते हैं, वे शिव हमारा कल्याण करें।
जिन शिव शंकर  की जटाओं में अति वेग से विलास पुर्वक भ्रमण कर रही गंगा की लहरें उनके शीश पर लहरा रही हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचंड ज्वालाएं धधक-धधक प्रज्वलित हो रही हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रवृति बना रहे है।
जो पर्वत राज सुता (पार्वती जी) के विलास मय रमणीय कटाक्षों में परम आनन्दित रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि और प्राणी वास करते हैं, और जिनकी कृपा दृष्टि मात्र से भक्तों की सभी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर भगवान शिव की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आन्दित रहता हैं।
मैं उन शिवजी की भक्ति करके आन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों के आधार और रक्षक हैं, जिनके जटाओं में लिपटे नागों के फान की मणियों के प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समरूप केसर के कातिन को दिशाएँ प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभूषित हैं।
जिन शिव जी का चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों के धूल से रंजित हैं (जिन्हे देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पन करते हैं), जिनके जटा पर लाल सर्प विराजमान है, उन चर्षशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।
जिन शिव जी ने इन्द्रादि भगवान का अभिषेक करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, और जो सभी देवों के पुज्य हैं, और चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्दी प्रदान करते हैं।
जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचंड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया और जो शिव पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर मालिश करने में अति चतुर है (यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, और निर्माण पैदा होता है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।
जिनके कण्ठ नव मेंघों की छियों से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा और बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं और जो कि जगत का अति धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभी प्रकार की सम्पन्नता प्रदान करें।
जिनके कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभुषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु: हार के काटने वाले, रक्षायज्ञ विनाशक, गजासुर और अन्धकसुर के संहारक हैं (जो मृत्यू को वश में करते हैं)। साथ हैं, मैं उन शिव जी का स्मरण करता हूँ।
जो कल्याणकारी, अविनाशी, सभी कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकसुर के सनरार्क, रक्षात्मक विविधतापुसंक और स्वयं यमराज के लिए भी यमदूत हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।
अतयंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकर से क्रमशः: ललाट में बढी हुइ प्रचंण अग्नि की मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ तांडव नृत्य में ललित शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।
कठोर पत्थर और कोमल शाय्या, सर्प और मोतियों की मालाओं, रत्नों और मिट्टी के टूकडों, शत्रु और दोस्तों, राजाओं और प्रजाओं, तिनकों और कमलों पर सामान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूँ।
जब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ, तटस्थकपट हो, सिर पर अंजली धारण कर चंचल नेत्रों और ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त कर लेंगे।
देवांगनाओं के सिर में गुंधे पुष्पों की मालाओं से झड़ते हुए खुशबूमय राग से मनोहर परमशोभा के धाम महादेव जी के अंगो की सुन्दरता पर परमानन्दित हमारे मन की प्रसन्नता से सर्वदा बढती हुई रही।
प्रचंड वडवानल की भांति पापों को भष्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अमानीमसिक अष्टमहासिध्धरों और चंचल नेत्रों वाली कन्याओं से शिव विवाह समय गान की मंगलध्वनि मंत्र सब मंत्रों से परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, संसारिक दुःखों को नष्ट करने वाली विजय मुद्राएँ।
इस उत्थानोत्तम शिव ताण्डव स्रोत को नित्य पढने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो, परंगुरू शिव में स्थापित हो जाता है और सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।
प्रात: शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं और भक्त रथ, यार्ड, घोड़ा आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।