शुक्रवार, 17 जनवरी 2025
बुधवार, 15 जनवरी 2025
शिवजी की स्तुति और "ॐ जय ॐकारा" Om Jay Omkara Shiva stuti
रविवार, 5 जनवरी 2025
खजुरिया श्याम (khajuriya-shyam) का धाम: आस्था और विश्वास का प्रतीक
गुरुवार, 8 जून 2023
क्षेमंकरी माता खीमज माता क्षेमकरि khimajmata
देवी क्षेमंकरी माता का मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर में से एक है यह मंदिर जालौर के भीनमाल नगर में स्थित है माता का मंदिर एक पहाड़ी पर निर्मित है यहाँ सीढ़िया बनी हुई है मंदिर तक चढ़ कर जाया जाता है मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क भी बनी हुई है क्षेमंकरी माता को खीमज माता भी कहा जाता है यह सोलंकी राजपूतों की कुलदेवी है यहाँ सोलंकी राजपूत ( आसोलिया asoliya ) अपनी कुलदेवी के दर्शन करने आते है यहाँ स्थानीय निवासियों के अलावा प्रदेश भर से भी लोग आते रहते है यह मंदिर राजस्थान के जालोर जिले के भीनमाल में 24.998°N अक्षांश और 72.239°E देशांतर पर स्थित एक [पहाड़] पर स्थित है । यह सुंधा माता मंदिर से 25 किमी दूर है । यहाँ पर यात्रियों के लिए उत्तम व्यवस्थाएं की गयी है यहाँ ठहरने के लिए सराय धर्मशालाएं आदि बानी हुई है भोजन के लिए भोजनालय बने हुए है खीमज माता की आरती सुबह 6 बजे और साय 7 बजे होती है उस कई श्रद्धालु उपस्थित रहते है माता के दर्शनों उत्तम समय रविवार का दिन होता
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी। trikal darshi trilok swami lyrics
आज की इस पोस्ट में हम भगवान शिव को प्रसन्न करने वाला एक बेहद मधुर एवं चमत्कारी भजन के बोल प्रस्तुत कर रहे है जो की ॐ नमः शिवाय धारावाहिक से लिया गया है
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी।
त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक
त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक।।
नृत्य गायन कला के स्वामी
नृत्य गायन कला के स्वामी।
हे धर्म पालक अधर्म नाशक
हे धर्म पालक अधर्म नाशक।।
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी।
है चल अचल में छवि तुम्हारी
है चल अचल में छवि तुम्हारी।
तुम अात्मा हो परमात्मा हो।।
सर्वेश तुम हो करुणेश तुम हो।
हैं भूल हम सब तुम्ही क्षमा हो।।
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी।
त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक
त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक।।
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी।
है चंद्र मस्तक जटा में गंगा
है चंद्र मस्तक जटा में गंगा।
है संगी साथी भव्य निशाचर।।
है कंठ शोभा सर्पों की माला
त्रिशूल कर में कटीव भंबर।।
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी।
त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक
त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक।।
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी।
अजातशत्रु हो मित्र सबके
अजातशत्रु हो मित्र सबके ।
पवित्रता के अाधार तुम हो।
मृत्युंजय तुम हो तुम्ही हो अक्षर
तुम्ही सनातन ओंकार तुम हो।।
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी
त्रिकालदर्शी त्रिलोक स्वामी।
त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक
त्रिपुंड धारी त्रयक्ष त्रयंबक।।
नृत्य गायन कला के स्वामी
नृत्य गायन कला के स्वामी।
हे धर्म पालक अधर्म नाशक
हे धर्म पालक अधर्म नाशक।।
हे धर्म पालक अधर्म नाशक।।
शिवजी को संहार का देवता कहा जाता है। शिवजी अपने सौम्य मुख और रौद्र रूप दोनों के लिए विख्यात हैं। उन्हें महादेव इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्हें अन्य देवताओं से बढ़कर माना जाता है। शिव सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के अधिपति हैं। वैसे तो शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन उन्होंने लय और प्रलय दोनों को हमेशा अपने वश में रखा है। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि उनके भक्त हुए हैं। शिव सभी को समान रूप से देखते हैं, इसलिए उन्हें महादेव कहा जाता है। शिव के कुछ लोकप्रिय नाम महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चंद्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय [मृत्यु पर विजयी], त्र्यंबक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विश्वधर, नीलकंठ, महाशिव, उमापति [पार्वती के पति], काल भैरव हैं। भूतनाथ, त्रिलोचन [तीन आँखों वाला], शशिभूषण आदि।
भगवान शिव को रुद्र के नाम से जाना जाता है। रुद्र का अर्थ है क्रोध का नाश करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला इसलिए भगवान शिव का स्वरूप कल्याणकारी है। रुद्राष्टाध्यायी के पांचवें अध्याय में भगवान शिव के अनेक रूपों का वर्णन किया गया है। रूद्र देवता को अचल, जंगम, सर्वभौतिक रूप, सभी जातियों, मनुष्यों, देवताओं, जानवरों और पौधों के रूप में मानने से यह सबसे अंतरंग भावना और सर्वोत्तम भावना साबित हुई है।
त्रिदेवों में भगवान शिव को संहार का देवता माना जाता है। शिव अनादि हैं और सृष्टि प्रक्रिया के मूल स्रोत हैं और यही काल महाकाल ज्योतिष का आधार है।
जो शिव और राम के बीच के अंतर को जानता है वह कभी भी भगवान शिव या भगवान राम का प्रिय नहीं हो सकता। शुक्ल यजुर्वेद संहिता के अंतर्गत रूद्र अष्टाध्यायी के अनुसार सूर्य, इन्द्र, विराट पुरुष, हरे वृक्ष, अन्न, जल, वायु और मनुष्य के कल्याण के लिए सभी भगवान शिव के रूप हैं। भगवान सूर्य के रूप में भगवान शिव मनुष्य के कर्मों को ध्यान से देखते हैं और उन्हें वैसा ही फल देते हैं। तात्पर्य यह है कि संपूर्ण ब्रह्मांड शिवमय है। मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार फल मिलता है, अर्थात् भगवान शिव स्वस्थ बुद्धि वालों को वर्षा, अन्न, धन, स्वास्थ्य, सुख आदि के रूप में जल प्रदान करते हैं और शिवजी उनके लिए रोग, दु:ख और मृत्यु आदि का भी शासन करते हैं। कमजोर बुद्धि के साथ।
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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023
पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा ( pagal soch raha ye lag ka mara soch raha )
भगवान श्री कृष्ण से सुदामा जी मिलने जाते है तब उनकी पत्नी श्री कृष्णा जी के लिए चावल की पोटली बांध देती है
सुदामा जी जब श्री कृष्णा जी से मिलते तो वे उनके महल की भव्यता को देख कर और उनके अपार धन धन सम्पदा वैभव को देख सोचते है की जिसके पास इतना धन वैभव जिसके पास अन्न धन की अपर सम्पदा है उसको मेरे इस चावल के तुच्छ दान से क्या फर्क पड़ने वाला है ऐसा सोच सोच वह लज्जित हुए जा रहे है 
त्रिभुवन की जहाँ सम्पदा,अन्न धन के भण्डार
त्रिभुवन की जहाँ सम्पदा,अन्न धन के भण्डार
वहाँ स्थान कहाँ पाएंगे मेरे चावल चार
पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा
नारायण का वास जहाँ, जहाँ लक्ष्मी का धाम
वहाँ सुदामा दीन के तंदुल का क्या काम
पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा
क्या सोचेंगी रानियाँ, क्या बोलेंगे दास
क्या सोचेंगी रानियाँ, क्या बोलेंगे दास
सहना होगा दीन को किस किस उपहास
पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा
निर्माता: रामानंद सागर/सुभाष सागर/प्रेण सागर
निर्देशक: रामानंद सागर / आनंद सागर / मोती सागर
मुख्य सहायक निर्देशक: योगी योगिन्दर
सहायक निर्देशक: राजेंद्र शुक्ला / श्रीधर जेट्टी / ज्योति सागर
पटकथा और संवाद: रामानंद सागर
कैमरा: अविनाश सतोस्कर
संगीत: रवींद्र जैन
गीतकार: रवींद्र जैन
पार्श्व गायक: सुरेश वाडकर / हेमलता / रवींद्र जैन / अरविंदर सिंह / सुशील
संपादक: गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर मिश्रा / सहदेव
बुधवार, 17 अगस्त 2022
हनुमान चालीसा Hanuman Chalisa

हनुमान चालीसा अवधी में लिखी गई एक काव्य कृति है, जिसमें भगवान श्री राम के एक महान भक्त हनुमान जी के गुणों और कार्यों का चालीस चौगुनी वर्णन किया गया है। यह बहुत ही छोटी रचना है जिसमें पवनपुत्र श्री हनुमान जी की सुन्दर स्तुति की गई है। इसमें बजरंगबली बाबा की भावपूर्ण वंदना ही नहीं भगवान श्री राम के व्यक्तित्व को भी सरल शब्दों में उकेरा गया है। चालीसा शब्द का अर्थ है 'चालीस' (40) क्योंकि इस भजन में 40 श्लोक हैं (परिचय के 2 दोहे छोड़कर)। हनुमान चालीसा उनके भक्तों द्वारा भगवान हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली प्रार्थना है जिसमें 40 पंक्तियाँ हैं इसलिए इस प्रार्थना को हनुमान चालीसा कहा जाता है। यह हनुमान चालीसा तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई है जो बहुत शक्तिशाली मानी जाती है।
इसके लेखक गोस्वामी तुलसीदास हैं।
हालांकि यह पूरे भारत में लोकप्रिय है, लेकिन विशेष रूप से उत्तर भारत में यह बहुत प्रसिद्ध और लोकप्रिय है। लगभग सभी हिंदुओं के पास यह दिल से है। सनातन धर्म में हनुमान जी को वीरता, भक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। शिव के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी को बजरंगबली, पवनपुत्र, मारुति नंदन, केसरी नंदन, महावीर आदि नामों से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी अमर हैं। प्रतिदिन हनुमान जी का स्मरण और उनके मंत्रों का जाप करने से मनुष्य के सारे भय दूर हो जाते हैं। कहते हैं हनुमान चालीसा के पाठ से भय दूर होता है, क्लेश दूर होते हैं. इसके गम्भीर भावों पर विचार करने से श्रेष्ठ ज्ञान से मन में भक्ति जागृत होती है।
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥१॥
महाबीर विक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा ॥२॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥३॥
विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया ॥४॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे ॥५॥
लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई ॥६॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा ॥७॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥८॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू ॥९॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥१०॥
राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहू को डरना ॥११॥
आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक ते काँपै
भूत पिशाच निकट नहि आवै
महाबीर जब नाम सुनावै ॥१२॥
नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा
संकट ते हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥१३॥
सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै
सोइ अमित जीवन फल पावै ॥१४॥
चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे ॥१५॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा
सादर हे रघुपति के दासा ॥१६॥
तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै
अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥१७॥
और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥१८॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥१९॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥२०॥
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
मंगलवार, 1 जून 2021
तुलसी विवाह की कथा Tulsi Ki Katha
शनिवार, 24 अप्रैल 2021
मैं तो राम ही राम पुकारू Me To Ram Hi Ram Pukaru
श्री राम जय जय राम श्री राम जय जय राम मैं तो राम ही राम पुकारू राम नहीं मोरी सुध लीनी मैं कब से राह निहारु

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