शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा ( pagal soch raha ye lag ka mara soch raha )

भगवान श्री कृष्ण से सुदामा जी मिलने जाते है तब उनकी पत्नी श्री कृष्णा जी के लिए चावल की  पोटली बांध देती है 

सुदामा जी जब श्री कृष्णा जी से मिलते तो वे उनके महल की भव्यता को देख कर और उनके अपार धन धन सम्पदा वैभव को देख सोचते है की  जिसके पास इतना धन वैभव जिसके पास अन्न धन की अपर सम्पदा है उसको मेरे इस चावल के तुच्छ दान से क्या फर्क पड़ने वाला है ऐसा सोच सोच वह लज्जित हुए जा रहे है सुदामा



   त्रिभुवन की जहाँ सम्पदा,अन्न धन के भण्डार

त्रिभुवन की जहाँ सम्पदा,अन्न धन के भण्डार

वहाँ स्थान कहाँ पाएंगे मेरे चावल चार  

पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा 

नारायण का वास जहाँ, जहाँ लक्ष्मी का धाम 

वहाँ सुदामा दीन के तंदुल का क्या काम 

पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा 

क्या सोचेंगी रानियाँ, क्या बोलेंगे दास

क्या सोचेंगी रानियाँ, क्या बोलेंगे दास

सहना होगा दीन को किस किस उपहास 

पगला सोच रहा, ये लाज का मारा सोच रहा 


pagla soch raha

निर्माता: रामानंद सागर/सुभाष सागर/प्रेण सागर

निर्देशक: रामानंद सागर / आनंद सागर / मोती सागर

मुख्य सहायक निर्देशक: योगी योगिन्दर

सहायक निर्देशक: राजेंद्र शुक्ला / श्रीधर जेट्टी / ज्योति सागर

पटकथा और संवाद: रामानंद सागर

कैमरा: अविनाश सतोस्कर

संगीत: रवींद्र जैन

गीतकार: रवींद्र जैन

पार्श्व गायक: सुरेश वाडकर / हेमलता / रवींद्र जैन / अरविंदर सिंह / सुशील

संपादक: गिरीश दादा / मोरेश्वर / आर मिश्रा / सहदेव

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