सोमवार, 19 अक्टूबर 2020

सोच समझ कर दान करें हिंदी कहानी soch samajh kar dan kare

 

एक राजा था वह प्रतिदिन दान पुण्य किया करता था राजा की ख्याति दिन प्रतिदिन बढ़ती चली गयी । लोग राजा के पास दूर दूर से दान लेने के लिए आया करते थे .धीरे धीरे राजा का  यश चारों और फैलने लगा , इस कारण राजा को अभिमान होने लगा । मंत्रियों ने राजा को समझाया कि इस तरह आप दान करते रहे तो राजकोष में कुछ भी शेष नहीं रहेगा । इस पर किसी ने सलाह दी की आप माँ लक्ष्मी  को प्रसन्न कर लो और वरदान मांग लो कि वह हमेशा इसी महल में निवास करें।राजा ने ऐसा ही किया उसने माँ लक्ष्मी की आराधना की माँ लक्ष्मी को प्रसन्न किया और वरदान माँगा कि , माँ इस महल में धन की कभी कमी न रहे माता लक्ष्मी ने उसे वरदान दिया कि जब तक मैं इस महल में रहूंगी तब तक उसके यहां कभी धन धान्य की कमी नहीं रहेगी , वो जितना धन खर्च करेगा उतने धन का दुगुना उसे फिर से मिल जायेगा । और साथ ही ये चेतावनी भी दी कि जब तक वो इस राज्य का राजा है , तब तक ही वो उसके महल में निवास करेंगी। अब तो राजा खूब दान करने लगा। राजा के यहाँ पात्र कुपात्र गरीब अमीर सभी दान लेने आने लगे धीरे धीरे राज्य में लोग आलसी हो गए । कोई भी काम नहीं करते थे , सब राजा के द्वारा मिले धन से अपना गुजारा चला रहे थे, शराब पीना ,जुआ खेलना, औरतों के साथ मारपीट करना , और भी कई अनैतिक कार्य होने लगे राज्य में अत्याचार बहुत अधिक फैल गया था । राजा को मंत्रियो ने समझाने की खूब कोशिश की पर राजा नहीं माना उसे तो अपने दानी होने का अभिमान था । ये देख सभी देवता दुखी हो उठे और उन्होंने दिन इंद्र को सुचित किया तब इंद्र देव ने राजा के अभिमान को तोड़ने के लिए ब्राह्मण का वैश धारण किया और राजा के महल में गये। राजा ने उनसे दान माँगने को कहा तो उस पर ब्राह्मण के वैष में आए इंद्र देव ने कहा कि हे राजन तुम मुझे दान देने में असमर्थ हो तुम किसी भी व्यक्ति को उसकी क्षमता के बराबर दान नहीं दे सकते हो। तो राजा आवेश में आ गया और बोला मैं आपको आपके भार के बराबर दान दे सकता हूँ, तब ब्राह्मण बोला अगर तुम मुझे मेरे भार के बराबर दान नहीं दे पाए तो ? तब राजा बोला हे महात्मा अगर मैं आपको संतुष्ट नहीं कर पाया तो मैं आपका दास बन जाऊंगा यह कह कर उसने एक बड़ा सा तराजू मंगाया एक ओर ब्राह्मण को उसमें बिठाया और दुसरी तरफ सोने चाँदी हीरे जवारात रखता गया लेकिन तराजू टस से मस नहीं हुआ। राजा अपने एवं रानी के भी आभुषण तराजु पर रख दिए तो भी कोई फर्क नहीं पड़ा । अब राजा ने ब्राह्मण की दासता स्वीकार कर ली तब ब्राह्मण ने आदेश दिया कि हे राजा अब तुम्हारे पास कुछ भी शेष नहीं है, अतः तुम मेरे दास हो । मैं तुम्हें आदेश देता कि तुम अपनी मेहनत से कमा कर लाओगे वो मुझे सौप दोगे। राजा भेष बदल कर पुरे नगर में काम की तलाश में निकला परंतु उसे कही काम नहीं मिला । मुफ्त का धन पाकर लोग आलसी हो गए थे ये देख राजा बहुत दुखी हुआ बहुत भटकने पर उसे एक व्यक्ति मिला उससे राजा ने कोई काम माँगा तो उस व्यक्ति ने एक बक्सा देते हुए कहा तुम ये मेरे घर तक पहुंचा दो मैं तुम्हें तुम्हारी मजदुरी दे दुंगा, राजा तैयार हो गया। उसने वह सामान उसके पहुंचा दिया, उसने राजा को एक रुपया दिया। उसने वह रुपया ले कर उस ब्राह्मण को देना चाहा तो ब्राह्मण बोला राजा इस सिक्के को इस तराजू पर रख दो तो राजा ने वैसा ही किया। राजा ये देखकर हैरान रह गया कि जिन सोने चाँदी के भारी भारी आभुषणों से जो तराजू नहीं झुका वो एक सिक्के से झुक गया। अब राजा ने ब्राह्मण के सामने हाथ जोड़े और कहा हे महात्मन कृपा कर मुझे अपना परिचय दीजिए तब इंद्र देव अपने वास्तविक रुप आए और राजा से बोले हे राजन कठिन परिश्रम से कमाया हुआ धन ही श्रेष्ठ होता है इस लिए तुम कभी भी किसी भी कुपात्र को दान नहीं करोंगें। राजा ने इंद्र देव को वचन दिया कि वो सदा उनकी इस आज्ञा का पालन करेगा। 

शिक्षा - सोच समझ कर ही दान करना चाहिए 





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