बुधवार, 22 जनवरी 2025

मशीनों जैसा बनने से इंसान बनने तक: एक यात्रा manav se machine aur machine se manav

मशीनों जैसा बनने से इंसान बनने तक: एक यात्रा

हमारी जिंदगी में मशीनों का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। विज्ञान और तकनीक के इस युग में, मशीनें केवल हमारे काम को आसान ही नहीं बनातीं, बल्कि हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी हैं। लेकिन क्या हो, अगर एक इंसान मशीनों के प्रति इतना लगाव महसूस करे कि वह खुद भी मशीन जैसा बन जाए? क्या ऐसा इंसान फिर से अपने भीतर मानवीय भावनाओं को जागृत कर सकता है? यह कहानी एक ऐसी ही यात्रा की है, जहां मशीनों जैसा बनने वाले इंसान ने फिर से मानवीय भावनाओं को समझा और अपने भीतर एक नए इंसान को जन्म दिया।

मशीनों का आकर्षण

बचपन से ही मुझे मशीनों से खास लगाव था। मशीनों की परिशुद्धता, उनकी दक्षता और उनका बिना थके काम करते रहना मुझे मंत्रमुग्ध कर देता था। वे ना थकतीं, ना शिकायत करतीं। उनके लिए बस एक प्रोग्राम या कमांड काफी था, और वे अपने काम को पूरी निष्ठा से करती थीं। मुझे मशीनों का यह व्यवस्थित और तार्किक तरीका इंसानी भावनाओं और अव्यवस्था से कहीं बेहतर लगता था।

मुझे मशीनों का यह अनुशासन इतना भा गया कि मैंने अपने जीवन को भी उसी ढंग से ढालने की कोशिश की। मैं अपने काम को बिना रुके, बिना थके पूरा करने में लग गया। धीरे-धीरे, मैं खुद को मशीन जैसा महसूस करने लगा। मेरा जीवन एक कार्यक्रम की तरह हो गया, जिसमें भावनाओं की कोई जगह नहीं थी।

मशीन जैसा जीवन

मशीन जैसा जीवन पहले तो मुझे बेहद संतोषजनक लगा। मैं अपने काम में पूरी तरह डूबा रहता। न भावनाओं का बोझ, न रिश्तों का झंझट। मेरे लिए जीवन का हर पहलू एक कार्य था, जिसे पूरा करना ही मेरी प्राथमिकता थी। मैं सफल भी हुआ। मेरी कार्यक्षमता दूसरों से बेहतर थी, और लोग मेरी प्रशंसा करते थे।

लेकिन धीरे-धीरे, मैंने महसूस किया कि मैं अंदर से खाली हो रहा हूं। मेरा जीवन एक उद्देश्यहीन दौड़ सा लगने लगा। सफलता और प्रशंसा के बावजूद, मैं अंदर से अकेला था। मेरे पास मशीनों की तरह काम करने की क्षमता थी, लेकिन मनुष्य की तरह महसूस करने की क्षमता कहीं खो चुकी थी।

मानवीय भावनाओं की समझ

एक दिन, मेरी मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई, जिसने मेरी जिंदगी बदल दी। वह एक बुजुर्ग थे, जो अपने साधारण जीवन में भी बहुत खुश और संतुष्ट लगते थे। मैंने उनसे उनकी खुशी का राज पूछा, तो उन्होंने कहा, "खुशी केवल काम में नहीं, बल्कि रिश्तों, भावनाओं और छोटे-छोटे पलों में छिपी होती है। मशीनें बेहतरीन काम कर सकती हैं, लेकिन वे प्यार, करुणा और इंसानियत को नहीं समझ सकतीं।"

उनकी बातें मेरे दिल को छू गईं। मैंने पहली बार महसूस किया कि मैंने मशीनों की दक्षता तो हासिल कर ली, लेकिन इंसान होने की सबसे अहम बात – भावनाओं को जीना – कहीं खो दिया था। मैंने तय किया कि अब मैं अपनी भावनाओं को समझने और उनके साथ जीने की कोशिश करूंगा।

भावनाओं को अपनाने की यात्रा

भावनाओं को फिर से समझना मेरे लिए आसान नहीं था। शुरुआत में, मुझे यह अजीब और असहज लगा। लेकिन धीरे-धीरे, मैंने खुद को उन भावनाओं के प्रति खोलना शुरू किया। मैंने अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना शुरू किया। मैंने लोगों की खुशियों और दुखों को महसूस करना सीखा। मैंने दूसरों की मदद करने का प्रयास किया, और इससे मुझे एक अनोखी खुशी मिली।

सबसे बड़ी सीख मुझे यह मिली कि मानवीय भावनाएं कमजोरियां नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं। प्यार, करुणा, और सहानुभूति हमें एक-दूसरे से जोड़ती हैं। दुख और पीड़ा हमें हमारी कमजोरी का अहसास कराते हैं, लेकिन ये हमें मजबूत बनने का रास्ता भी दिखाते हैं।

मशीनों और इंसानियत का संतुलन

आज, मैं अपने जीवन में मशीनों और मानवीय भावनाओं के बीच संतुलन बनाना सीख चुका हूं। मशीनें हमारी जिंदगी को आसान बनाती हैं, लेकिन वे हमारे जीवन का विकल्प नहीं हो सकतीं। इंसान होने का मतलब है महसूस करना, जीना, और उन पलों का आनंद लेना, जो हमें खुशी और संतोष देते हैं।

अब मैं अपने काम में मशीनों जैसी दक्षता लाने की कोशिश करता हूं, लेकिन अपने जीवन में इंसानियत को सबसे ऊपर रखता हूं। मैंने सीखा कि सफलता केवल काम में नहीं, बल्कि हमारे रिश्तों, हमारी भावनाओं और हमारी इंसानियत में भी होती है।

निष्कर्ष

मशीनें हमारे जीवन को आसान बना सकती हैं, लेकिन वे हमारे जीवन का सार नहीं हैं। हम इंसान हैं, और हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारी भावनाएं, हमारे रिश्ते और हमारी इंसानियत हैं। मशीनों जैसा बनने की चाहत में, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी असली पहचान हमारे दिल और हमारी आत्मा में है।

यह यात्रा मेरे लिए आत्म-साक्षात्कार और जीवन के असली अर्थ को समझने की यात्रा थी। मैंने सीखा कि मशीनों से प्रेरणा लेना ठीक है, लेकिन हमें अपनी इंसानियत को कभी खोने नहीं देना चाहिए। जीवन में सबसे बड़ी सफलता वही है, जो हमें इंसान बनाए रखे।


लेखक: जसवंत सिंह


शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

कहानी एक गरीब किसान के बेटे से एक अमीर और सफल व्यक्ति बनने की प्रेरणादायक ek garib kisan ke bete ki kahani

Hindi new story जसवंत सिंह ढोसर की कहानी एक गरीब किसान के बेटे से एक अमीर और सफल व्यक्ति बनने की प्रेरणादायक यात्रा है। यह कहानी मेहनत, दृढ़ संकल्प, और अपने सपनों के प्रति अटूट विश्वास की मिसाल है।

शुरुआती जीवन और संघर्ष:

जसवंत सिंह एक साधारण किसान परिवार में जन्मे थे। उनका बचपन कठिनाइयों में बीता, जहाँ उन्हें परिवार के आर्थिक हालातों को देखकर छोटी उम्र में ही जिम्मेदारियों को समझना पड़ा। खेतों में काम करते हुए उन्होंने न केवल अपने परिवार की मदद की, बल्कि हमेशा एक बड़े जीवन का सपना देखा।

गरीबी के कारण उन्हें कई बार पढ़ाई और अपने सपनों को पीछे रखना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जसवंत सिंह ने महसूस किया कि शिक्षा और मेहनत ही उन्हें गरीबी के चक्र से बाहर निकाल सकती है।

पहला कदम:

जसवंत ने अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए छोटे-मोटे काम करना शुरू किया। उन्होंने खेतों में काम करते हुए खाली समय में पढ़ाई की। शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के लिए विभिन्न छोटे व्यवसायों का सहारा लिया।

उन्होंने सबसे पहले कृषि से जुड़े व्यवसायों में कदम रखा, जैसे कि पशुपालन, बागवानी, या अनाज का व्यापार। धीरे-धीरे उन्होंने समझा कि बाजार की जरूरतों को कैसे पहचाना जाता है और उसे अवसर में कैसे बदला जाता है।

व्यापार और नई शुरुआत:

जसवंत सिंह ने पारंपरिक खेती से हटकर आधुनिक कृषि तकनीकों का इस्तेमाल शुरू किया। उन्होंने खेती के साथ-साथ अपने उत्पादों का व्यापार करना शुरू किया। उनके कृषि उत्पाद बेहतर गुणवत्ता वाले थे, जिससे उन्होंने स्थानीय बाजारों में एक पहचान बनाई।

इसके अलावा, जसवंत ने अपनी बचत को समझदारी से निवेश किया। उन्होंने छोटे व्यापार जैसे अनाज मंडी में व्यापार, ट्रांसपोर्ट सेवा, या स्थानीय स्तर पर अन्य व्यवसाय शुरू किए।

मेहनत का फल:

उनकी मेहनत और दूरदर्शिता ने उन्हें धीरे-धीरे सफलता दिलाई। उन्होंने अपनी आय का एक हिस्सा नई तकनीकों और व्यवसाय के विस्तार में लगाया। जसवंत सिंह की सबसे बड़ी ताकत उनका धैर्य और जोखिम उठाने की क्षमता थी। उन्होंने असफलताओं को सबक की तरह लिया और हर बार बेहतर योजना के साथ आगे बढ़े।

सफलता की कहानी:

कुछ वर्षों के भीतर, जसवंत सिंह एक सफल व्यापारी बन गए। उन्होंने न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारा, बल्कि अपने गाँव में रोजगार के अवसर भी पैदा किए। उनकी सफलता ने यह साबित कर दिया कि अगर मेहनत और इरादे मजबूत हों, तो कोई भी मुश्किल राह में बाधा नहीं बन सकती।

प्रेरणा:

जसवंत सिंह की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है जो कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। यह दिखाता है कि गरीबी कोई बाधा नहीं है, बल्कि इसे मेहनत, शिक्षा और सही दृष्टिकोण से जीता जा सकता है।

अगर आप उनकी सफलता की कहानी के किसी विशेष पहलू के बारे में जानना चाहते हैं, तो बताइए!

गुरुवार, 18 अगस्त 2022

बुढ़िया और बहु हिंदी कहानी budhiya aur bahu ki hindi kahani

 हिंदी कहानी दुष्टता का अंत

एक गांव में एक बुढ़िया और उसका बेटा रहता था
dustata ka ant

  बेटा बहु और माँ तीनो साथ ही रहा करते थे बुढ़िया का बेटा अपनी माँ को बहुत चाहता था पर ठीक उसके विपरीत बहु उससे घृणा करती थी। 
बेटे की अनुपस्थिती में  वह उस बुढ़िया को बुरा भला कहती थी। समय पर खाना भी नहीं देती थी एक दिन उस बुढ़िया का बेटा व्यापार के उद्देश्य से कुछ दिनों के लिए शहर जाता है। जाते जाते वह अपनी पत्नी को माँ  का ख्याल रखने को कह कर जाता है। उस वक्त वह उसकी हां में हां मिला देती है। पर जब उसका पति चला जाता है तब वह उसके साथ बहुत बुरा बर्ताव करती है समय पर भोजन भी नहीं देती और कभी कभी मारपीट करती थी धीरे  धीरे बुढ़िया का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है वह बिस्तर से उठ सकने में भी असमर्थ हो जाती है ऐसी स्थिति में वह अपनी सास को जंगल में छोड़ आती है ताकि उसे कोई जंगली जानवर खा जाये दूसरे दिन उसका पति घर लौट आता है वह पति को देख कर विलाप करती है की माँ नदी पर नहाने गयी थी  नदी में बह गयी है उसका पति सब बातो से अनजान अपनी पत्नी की बातों पर विश्वास कर लेता है बुढ़िया जंगल में बेसूद पड़ी होती है अचानक वहाँ बारिश होने लगती है जिससे उस बुढ़िया के मुँह में पानी पहुंचता है जिससे उसकी मूर्छा समाप्त हो जाती है वह खिसकते खिसकते आगे बढ़ने लगती है सांयकाल होने तक वह रास्ते तक आ जाती है वहीँ थोड़ी दुरी पर एक शमशान होता है रात को चार चोर चोरी करके वहा से गुजर रहे होते है चोर किसी सेठ साहूकार के यहाँ से चोरी करके आ रहे होते है उनके पास काफी खजाना होता है वे शमशान से कुछ दुरी पर ही रुक जाते है और खाने पिने की व्यवस्था करने लगते है आज उन्होंने बड़ा हाथ मारा था तो कुछ स्वादिष्ट भोजन तैयार किया बुढ़िया धीरे धीरे खिसकते खिसकते उनके पास पहुंच जाती है चोर उसे भूत समझ कर भाग खड़े होते है बुढ़िया उसमे से खाना खा लेती है खाना मिल जाने से बुढ़िया के हाथों  पैरों में जान आ जाती है भोर होते होते बुढ़िया घर तक पहुंच जाती है बेटे को आवाज़ लगाती है की बेटे दरवाजा खोल बेटा बहु ये सुन चौक जाते है बेटा दरवाजा खोलता है तो डर जाता है सामने उसकी माँ खड़ी है हाथों में खजाने के थेले लिए हुए। जिसे उसकी पत्नी ने मरा हुआ बताया था बेटा घबराते हुए पूछता है की ये सब कैसे हुआ तो उसकी माँ उसे सारी घटना बता देती है बेटा बहुत ज्यादा दुखी होता है वह अपनी पत्नी को राजा से अनुरोध कर करावास में भिजवा  देता है और सेठ के चोरी हुए खजाने को पुनः लौटा देता है सेठ उसकी ईमानदारी  से प्रसन्न होकर उसे कुछ धन इनाम देता है और वह बहुत आमिर हो जाता हैं । माँ और बेटा बड़े सुख से जीवन यापन करते है



सोमवार, 19 अक्टूबर 2020

सोच समझ कर दान करें हिंदी कहानी soch samajh kar dan kare

 

एक राजा था वह प्रतिदिन दान पुण्य किया करता था राजा की ख्याति दिन प्रतिदिन बढ़ती चली गयी । लोग राजा के पास दूर दूर से दान लेने के लिए आया करते थे .धीरे धीरे राजा का  यश चारों और फैलने लगा , इस कारण राजा को अभिमान होने लगा । मंत्रियों ने राजा को समझाया कि इस तरह आप दान करते रहे तो राजकोष में कुछ भी शेष नहीं रहेगा । इस पर किसी ने सलाह दी की आप माँ लक्ष्मी  को प्रसन्न कर लो और वरदान मांग लो कि वह हमेशा इसी महल में निवास करें।राजा ने ऐसा ही किया उसने माँ लक्ष्मी की आराधना की माँ लक्ष्मी को प्रसन्न किया और वरदान माँगा कि , माँ इस महल में धन की कभी कमी न रहे माता लक्ष्मी ने उसे वरदान दिया कि जब तक मैं इस महल में रहूंगी तब तक उसके यहां कभी धन धान्य की कमी नहीं रहेगी , वो जितना धन खर्च करेगा उतने धन का दुगुना उसे फिर से मिल जायेगा । और साथ ही ये चेतावनी भी दी कि जब तक वो इस राज्य का राजा है , तब तक ही वो उसके महल में निवास करेंगी। अब तो राजा खूब दान करने लगा। राजा के यहाँ पात्र कुपात्र गरीब अमीर सभी दान लेने आने लगे धीरे धीरे राज्य में लोग आलसी हो गए । कोई भी काम नहीं करते थे , सब राजा के द्वारा मिले धन से अपना गुजारा चला रहे थे, शराब पीना ,जुआ खेलना, औरतों के साथ मारपीट करना , और भी कई अनैतिक कार्य होने लगे राज्य में अत्याचार बहुत अधिक फैल गया था । राजा को मंत्रियो ने समझाने की खूब कोशिश की पर राजा नहीं माना उसे तो अपने दानी होने का अभिमान था । ये देख सभी देवता दुखी हो उठे और उन्होंने दिन इंद्र को सुचित किया तब इंद्र देव ने राजा के अभिमान को तोड़ने के लिए ब्राह्मण का वैश धारण किया और राजा के महल में गये। राजा ने उनसे दान माँगने को कहा तो उस पर ब्राह्मण के वैष में आए इंद्र देव ने कहा कि हे राजन तुम मुझे दान देने में असमर्थ हो तुम किसी भी व्यक्ति को उसकी क्षमता के बराबर दान नहीं दे सकते हो। तो राजा आवेश में आ गया और बोला मैं आपको आपके भार के बराबर दान दे सकता हूँ, तब ब्राह्मण बोला अगर तुम मुझे मेरे भार के बराबर दान नहीं दे पाए तो ? तब राजा बोला हे महात्मा अगर मैं आपको संतुष्ट नहीं कर पाया तो मैं आपका दास बन जाऊंगा यह कह कर उसने एक बड़ा सा तराजू मंगाया एक ओर ब्राह्मण को उसमें बिठाया और दुसरी तरफ सोने चाँदी हीरे जवारात रखता गया लेकिन तराजू टस से मस नहीं हुआ। राजा अपने एवं रानी के भी आभुषण तराजु पर रख दिए तो भी कोई फर्क नहीं पड़ा । अब राजा ने ब्राह्मण की दासता स्वीकार कर ली तब ब्राह्मण ने आदेश दिया कि हे राजा अब तुम्हारे पास कुछ भी शेष नहीं है, अतः तुम मेरे दास हो । मैं तुम्हें आदेश देता कि तुम अपनी मेहनत से कमा कर लाओगे वो मुझे सौप दोगे। राजा भेष बदल कर पुरे नगर में काम की तलाश में निकला परंतु उसे कही काम नहीं मिला । मुफ्त का धन पाकर लोग आलसी हो गए थे ये देख राजा बहुत दुखी हुआ बहुत भटकने पर उसे एक व्यक्ति मिला उससे राजा ने कोई काम माँगा तो उस व्यक्ति ने एक बक्सा देते हुए कहा तुम ये मेरे घर तक पहुंचा दो मैं तुम्हें तुम्हारी मजदुरी दे दुंगा, राजा तैयार हो गया। उसने वह सामान उसके पहुंचा दिया, उसने राजा को एक रुपया दिया। उसने वह रुपया ले कर उस ब्राह्मण को देना चाहा तो ब्राह्मण बोला राजा इस सिक्के को इस तराजू पर रख दो तो राजा ने वैसा ही किया। राजा ये देखकर हैरान रह गया कि जिन सोने चाँदी के भारी भारी आभुषणों से जो तराजू नहीं झुका वो एक सिक्के से झुक गया। अब राजा ने ब्राह्मण के सामने हाथ जोड़े और कहा हे महात्मन कृपा कर मुझे अपना परिचय दीजिए तब इंद्र देव अपने वास्तविक रुप आए और राजा से बोले हे राजन कठिन परिश्रम से कमाया हुआ धन ही श्रेष्ठ होता है इस लिए तुम कभी भी किसी भी कुपात्र को दान नहीं करोंगें। राजा ने इंद्र देव को वचन दिया कि वो सदा उनकी इस आज्ञा का पालन करेगा। 

शिक्षा - सोच समझ कर ही दान करना चाहिए 





बुधवार, 30 सितंबर 2020

माँ बाप की सेवा से बड़ा कोई और धर्म नहीं हिन्दी कहानी मा bap sewa se bada koi dharm nahi

प्रेरणादायक कहानी


एक गाँव में डालिया नाम का एक गरीब किसान रहता था। उसके दो बेटे थे हीरा और दीनू। डालिया बड़ा नेक और ईमानदार था। पत्नी के गुजर जाने के बाद भी उसने दोनों बच्चों की बड़ी मुश्किल से परवरिश की बड़ा बेटा खुब पढाई करता हैं, इसके विपरीत छोटा बेटा ज्यादा नहीं पढ़ पाता हैं। जब उसके लड़के बड़े हो गए तो उसने उनकी शादी करवा दी। दीनू पढ़ा लिखा था इसीलिए उसे शहर नौकरी मिल गई। अब वह शहर जाकर पत्नी के साथ रहने लगा।
 
हीरा कम पढ़ा लिखा इसलिए उसे कोई योग्य काम न मिल पाने के कारण गांव में ही रह कर खेती बाड़ी में अपने पिता का हाथ बटाने लगा। जैसे तैसे समय बितता गया। एक बार डालिया बहुत बिमार हुआ,उसे शहर के अस्पताल में इलाज के लिए ले जाना था तो उसने अपने बड़े बेटे दीनू को संदेश भिजवाया। दीनू ने अपनी पत्नी को बताया तो पत्नी ने ये कहकर मना कर दिया कि बड़े अस्पताल में बहुत ज्यादा खर्च लगता हैं, पिताजी को गाँव के किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा देते हैं और वहाँ आपका छोटा भाई हैं ही उनकी देखभाल करने के लिए। दीनू ने संदेश में गाँव न आ पाने की अपनी असमर्थता बताते हुए मना कर दिया। इसके बाद हीरा ने जैसे तैसे कुछ पैसे इकट्ठे करके पिता का इलाज करवाता हैं। इलाज में बहुत अधिक खर्चा होने के कारण उन पर बहुत ही ज्यादा कर्जा हो जाता हैं, ये देख दीनू गाँव आना ही बंद कर देता हैं उनका सब कुछ गिरवी हो जाता हैं। इसके बाद हीरा कड़ी मेहनत कर एक-एक करके सभी का कर्जा चुकाने लगता हैं, धीरे-धीरे  करके कुछ समय में कर्ज से पुरी तरह मुक्त हो जाता हैं। इसके बाद वह फिर से कर्ज लेकर अपना छोटा सा व्यवसाय प्रारंभ करता है। ईश्वर की कृपा से उसका व्यवसाय चलने लगता हैं। कुछ ही समय में उसके पास खुब पैसा हो जाता है। ठीक इसके विपरीत दीनू की पत्नी धन को पानी की तरह बहाती थी, इस कारण उसके पास धन का अभाव होता गया , जहाँ वह काम कर रहा था वहाँ भी भारी नुकसान होने के कारण वह दुकान बंद हो जाती हैं और वह बेरोजगार हो जाता है। उसकी दशा बहुत ही दयनीय हो जाती हैं। अब वह अपनी पत्नी के साथ वापस गाँव लौटता हैं और अपने भाई और पिता के पास जाकर रोने लगता हैं। बाप उसे बहुत खरी खोटी सुनाता हैं, और घर से निकल जाने को कहता हैं, लेकिन हीरा कहता है पिताजी जो हुआ उसे भूल जाईए इस समय भाई तकलीफ में है हमें इनकी सहायता करनी चाहिए। फिर डालिया उसे घर में रख लेता है और दोनों भाई मिलकर व्यवसाय करते हैं और खुब पैसा कमाते हैं इस तरह डालिया का घर बहुत ही समृद्ध हो जाता है। 

शिक्षा -  माँ बाप की सेवा से बड़ा कोई और धर्म नहीं

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

भगवान और किसान हिन्दी कहानी bhagwan aur kisaan

एक बार एक किसान भगवान से बहुत नाराज हो गया कभी बाढ़ आती, कभी सूखा पड़ता, कभी धूप बहुत तेज होती, कभी ओले पड़ते!  हर बार, किसी ना किसी वजह से उसकी फसल खराब हो जाती है थी।  एक दिन वह बहुत परेशान हो गया और उसने भगवान से कहा, देखिए भगवान, आप सर्वशक्तिमान हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि आप खेती बाड़ी के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं, मेरी आपसे एक प्रार्थना  है कि एक साल मुझे एक मौका दें, जैसा मैं चाहूं वही हो, तब आप देखेंगे कि मैं अन्न भंडार कैसे भरता हूँ।  भगवान मुस्कुराए और कहा, ठीक है, मैं तुम्हें मौसम दूंगा जैसा कि तुम कहते हो, मैं हस्तक्षेप नहीं करूंगा!
किसान ने गेहूं की फसल बोई, जब वह धूप चाहता था, तब धूप मिली, जब पानी फिर पानी, तेज धूप, ओले, बाढ़, तूफान तो उसने आने ही नहीं दिया, फसल समय के साथ बढ़ती गई और किसान खुश था क्योंकि ऐसी फसल आज तक नहीं हुई थी । किसान ने अपने मन में सोचा, भगवान को तो खेती बाडी का कुछ भी अनुभव नहीं हैं, वे कैसे इतने सालों तक किसानों को परेशान करते रहे।
फसल कटाई का समय भी आया, किसान बड़े गर्व के साथ फसल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल कटनी शुरू हुई, वह अपने सीने पर हाथ रखकर बैठ गया।  गेहूँ की एक भी बाली के अंदर गेहूँ नहीं था, सभी बालियाँ अन्दर से खाली थीं, बहुत दुखी होकर उसने भगवान से कहा, हे भगवान ये क्या हुआ?
तब भगवान ने कहा, "यह होना ही था, तुमने पौधों को संघर्ष का एक भी अवसर नहीं दिया। तुमने उन्हें तेज धूप में गर्म होने की अनुमति नहीं दी, न ही तूफान को आने दिया, उन्हें कोई भी कष्ट महसूस नहीं हुआ। यही वजह है कि सभी पौधे खोखले बने रहे, जब तूफान आता है, भारी बारिश होती है, ओले गिरते हैं। वह बल से खड़ा होता है, वह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता है, और इस संघर्ष से उत्पन्न होने वाली ताकत उसे ऊर्जा देती है , संघर्ष उनके जीवन को अनुभव प्रदान करता है। स्वर्ण को कुंदन बनने के लिए तपना होता हथौडे़ की चोट सहनी पड़ती हैं।
उसी तरह जीवन में संघर्ष न हो, चुनौती न हो, तो आदमी खोखला ही रह जाता है, उसमें कोई गुण नहीं होता जो उसे मजबूत बनाते हैं, अगर हमें प्रतिभाशाली होना हैं, तो हमें इन परिस्थियों को स्वीकार करना होगा, अन्यथा हम खोखले बने रहेंगे।  यदि आप अपने जीवन में सफल होना चाहते हैं, प्रतिभाशाली होना चाहते हैं, तो आपको संघर्ष और चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा!

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

बुरे का अंत बुरा होता हैं हिन्दी कहानी bure ka ant bura hi hota hai

hindi story

एक जंगल में चार चोर रहते थे।  वे चारों चोरी करते थे और जो कुछ भी उनके हाथ में आता उसे वितरित करके आपस में बाँट लेते थे। हालाँकि वे एक-दूसरे के प्रति प्यार दिखाते थे, लेकिन वे एक-दूसरे से जलन करते थे।  वे चारों अपने मन में सोचते थे कि अगर किसी दिन ज्यादा बडी चोरी करेंगे तो अपने साथियों को मार डालेंगे और सारा सामान हड़प लेंगे। चारों चोर मौके की तलाश में थे। लेकिन उन्हें अभी तक ऐसा मौका नहीं मिला था।  चारों चोर बहुत दुष्ट और स्वार्थी थे।
एक रात चारों चोर चोरी की इच्छा से घूम रहे थे। वे एक सेठ के घर में घुस गए और सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात, रुपए और पैसे जैसी हर चीज लूट ली और भाग गए।  चारों चोर पुलिस से बचने के लिए दो दिन तक भूखे-प्यासे जंगल में भटकते रहे।
सेठ ने पुलिस में चोरी की शिकायत दर्ज कराई थी।  सेठ को पुलिस विभाग में भी जाना जाता था। चोरों को पकड़ने के लिए शहर में चारों ओर पुलिस फैला दी गई।  जंगल से बाहर निकलना चोरों के लिए खतरे से खाली नहीं था। चोरों ने कुछ दिनों तक जंगल में छिपने की इच्छा की।
धीरे-धीरे, चोरों के पास भोजन खत्म हो गया। कुछ दिनों वो भुखे रह लिये, लेकिन जब भूख को सहन करना असंभव हो गया, तो उन्होंने शहर से भोजन प्राप्त करने का फैसला किया।
एक-दूसरे से सलाह करने के बाद, दो चोर शहर गए और वहांँ के हालात का पता लगाया और अपने साथियों के लिए खाना भी लाए। उन्होंने शहर में जाकर बहुत सारा खाना खाया और खूब शराब पी। फिर उन्होंने अपने दोनों साथियों को मारने और सारा सामान खुद हड़पने की योजना बनाई।
दोनों ने योजना को अंजाम देने के लिए भोजन में जहर मिला दिया और जंगल में लौट आए।  दोनों चोर अपने-अपने मन में सोच रहे थे कि जब वे दोनों खाना खाकर मरेंगे, तो मैं इसे भी मार डालूंगा और सारा माल हड़प कर अमीर हो जाऊंगा।
इस बीच, जंगल में, दो चोरों ने भोजन करने वाले साथियों को मारने की योजना बनाई।  वे भी उन्हें मारकर सारा पैसा हड़पना चाहते थे।
जब दोनों चोर शहर से खाना लाए, तो जंगल में रहने वाले चोरों ने उनके साथियों पर हमला कर उन्हें मार डाला। अपने साथियों को मारकर दोनों चोर खाना खाने बैठ गए। भोजन में जहर होने से दोनों की भी मौत हो गई।  इसलिए कहा जाता है कि बुरे का अंत हमेशा बुरा होता है।

  शिक्षा: - इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान को बुरे काम नहीं करने चाहिए क्योंकि बुरे का अंत ही होता है।

गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

चार सच्चे मित्र हिन्दी कहानी Hindi Story

बहुत अरसे पहले। चार दोस्त एक खूबसूरत हरे जंगल में रहते थे। उनमें से एक चूहा था, दूसरा कौआ, तीसरा हिरण और चौथा कछुआ। अलग-अलग जातीयता होने के बावजूद, भी उनमें बहुत घनिष्ठता थी। चारों एक दूसरे पर मरते थे। चारों एक साथ रहते थे, बातचीत करते थे और बहुत खेलते थे। जंगल में एक साफ पानी का झील थी, जिसमें कछुआ रहता था। झील के किनारे जामुन का एक बड़ा पेड़ था। कौवा अपने घोंसले में रहता था।  एक चूहा पेड़ के नीचे जमीन में रहता था, और पास में घने जंगल में एक हिरण का डेरा था। कछुआ दिन में तट की रेत में धूप सेंकता था और पानी में डुबकी लगाता था।  बाकी तीनों दोस्त भोजन की तलाश में निकलते और बहुत दूर घूमने और सूर्यास्त के समय लौट आते थे।  चारों दोस्त एक साथ इकट्ठा होते,एक-दूसरे को गले लगाते, खेलते और धमाल करते थे।
  एक दिन चूहा और कौआ शाम को लौट आए, लेकिन हिरण वापस नहीं आया।  तीनों दोस्त उसे देखने लगे।  उनका खेलने का भी मन नहीं था।  कछुआ ने भरे हुए गले में कहा, “वह तुम दोनों से पहले हर रोज लौटता था। न जाने आज क्या हो गया है, जो अभी तक नहीं आया।  मेरा दिल डूब रहा है
चूहा चिंतित स्वर में बोला, "हां, बात बहुत गंभीर हैं।"  निश्चित रूप से वह कुछ परेशानी में है। अब हम क्या करें? "कौवे ने उड़ते हुए अपनी चोंच खोली। नीचे कुछ भी दिखाई नहीं देगा। हमें सुबह तक इंतजार करना होगा। मैं सुबह उड़ जाऊंगा और इसकी कुछ खबर आपके सामने लाऊंगा।"
कछुए ने सिर हिलाया "हम अपने दोस्त के कुशल होने की जाने बिना रात में कैसे सोएंगे? दिल को कैसे आराम मिलेगा?  मुझे अब उस तरफ चलना है, मेरी गति भी बहुत धीमी है, तुम दोनों सुबह आओ।  चूहे ने कहा, मैं अपने हाथ पे हाथ धर नहीं बैठ सकता, मैं भी कछुआ भाई के साथ चल जा रहा हूं, कौआ भाई तुम्हें सुबह जल्दी ही आना होगा।
कछुआ और चूहा चला। कौवे ने आँखों में रात बिताई।  भोर होते ही कौआ उड़ता हुआ इधर उधर देखता रहा।  एक स्थान पर, कौवे ने कछुए और चूहे को जाते देखा। अब कौवे ने भी हिरण को "मित्र हिरण कहना शुरू कर दिया, तुम कहाँ हो? आवाज दो दोस्त।
तभी उसने किसी के रोने की आवाज सुनी। स्वर उसके मित्र मृग की तरह था। उस आवाज़ की दिशा में उड़ते हुए, वह सीधे उस स्थान पर गया जहाँ हिरण एक शिकारी के जाल में फँस हुआ था। हिरण रोया कि कैसे एक निर्दयी शिकारी ने वहां जाल बिछाया हुआ था।  दुर्भाग्य से वह जाल को नहीं देख सका और फंस गया।  हिरन बोला अब वह शिकारी आएगा और मुझे पकड़ लेगा , वह मुझे ले जाएगा। मित्र कौवे! तुमको चूहे और मित्र कछुए को भी मेरी अंतिम शुभकामनाएं।
कौआ बोला,  मित्र हम हमारे प्राणों की बाजी लगाकर भी तुम्हें छुड़ा लेंगे। हिरण ने निराशा व्यक्त की, "लेकिन तुम ये कैसे करोगे?  कौए ने अपने पंख फड़फड़ाए।  "सुनो, मैं दोस्त चूहे को उसकी पीठ पर लाद कर लाता हूँ। वह अपने नुकीले दांतों से जाल को कुतर देगा।  हिरण ने आशा की एक किरण देखी। उसकी आँखें चमक उठीं। तो दोस्त, जल्द ही चूहे भाई को लाओ।
कौआ तेजी से उड़ गया, जहाँ कछुआ और चूहा आ गया था। कौवा ने बिना समय नष्ट किए कहा, "दोस्तों, हमारे दोस्त हिरण को एक दुष्ट शिकारी ने जाल में कैद किया है। यह उसके जीवन का मामला है अगर हम शिकारी के आने से पहले ही उसे  छोडा ले तो, नहीं तो वह उसे मार देगा। हमें इसके लिए क्या करना है? मुझे जल्दी बताओ? चूहे के तेज दिमाग ने कौवे के इशारे को समझ लिया था घबराओ मत। भाई कौवे, मुझे अपनी पीठ पर हिरन के पास ले चलो।

  कौआ चूहे को उठाकर हिरण के पास ले गया चूहे को हिरण को मुक्त करने में देर नहीं लगाई। जैसे ही हिरण मुक्त हुआ, उसने अपने दोस्तों को गले लगाया और उन्हें गले लगाकर धन्यवाद दिया।  फिर कछुआ भी वहाँ पहुँच गया और खुशी के माहौल में शामिल हो गया।  हिरण ने कहा, दोस्त, तुम भी आए हो। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे सच्चे दोस्त मिले।
चारों दोस्त उत्साहित थे और खुशी में नाचने लगे। तभी अचानक, हिरण चौंक गया और उसने अपने दोस्तों को चेतावनी दी, भाइयों, देखो दुष्ट शिकारी आ रहा हैं। तुरंत छिप जाओ। चूहा तुरंत एक पास के बिल में घुस गया। कौआ उड़ कर पेड़ के ऊपर जा बैठा। एक छलांग में हिरण पास की झाड़ी में घुस गया और गायब हो गया। लेकिन धीमी गति से चलने वाला कछुआ दो कदम भी नहीं जा सका था कि शिकारी आ गया। और जाली कटी देख उसने अपना माथा पीट लिया, "क्या फंस गया था और यह किसने किया था? वह पैरों के निशान का सुराग खोजने के लिए इधर-उधर देख रहा था कि उसकी नजर कछुए पर पडी। उसकी आंखें  चमक उठी। उसने कहा भागने वाले चोर की लंगोटी सही है।  अब यह कछुआ मेरे परिवार के भोजन के लिए उपयोगी होगा। तभी उसने कछुए को उठाया और अपने थेले में डाल लिया और थेले को ढंक दिया और चलने लगा।  कौवा ने तुरंत हिरण और चूहे को बुलाया और कहा, दोस्तों, हमारे दोस्त कछुए को शिकारी थेले में डाल कर लेकर जा रहा हैं।चूहा ने कहा, हमें अपने दोस्त को छूडाना चाहिए। लेकिन कैसे?
इस बार हिरण ने समस्या का हल सुझाया, दोस्तों, हमें यह काम करना है। मैं शिकारी के सामने से लंगडाके गुजरूंगा। मुझे लंगड़ा जान वह मुझे पकड़ने के लिए कछुए की थैली छोड़कर मेरे पीछे दौड़ेगा। मैं ले उसे बहुत दुर ले जाऊंगा इस बीच, चूहा भाई कछुए के थेले को कुतर कर उसे मुक्त कर देगा।
योजना अच्छी थी, हिरण को लंगड़ाते हुए देखकर शिकारी की बांछें खिल गईं। उसने बैग पटक दिया और हिरण के पीछे दौड़ा। हिरण ने उसके सामने लंगड़ा होने का नाटक किया और उसे घने जंगल में ले गया, इस बीच कौए ने थेला कुतर कर कछुए को मुक्त करा दिया शिकारी ये देख दांत पीसता रह गया ।

 सबक: अगर सच्चे दोस्त हो तो जीवन में आने वाली सभी परेशानियों से आसानी से निपटा जा सकता है।

गुरुवार, 16 जनवरी 2020

लालच से बड़ा कोई रोग नहीं हिंदी कहानी Lalach ek rog hindi story

एक राजा था वह बड़ा लोभी प्रवृत्ति का था, उसके मन में सदैव दुसरे राज्यों को पाने की कामना रहती थी वह दूसरे राज्यों पर आक्रमण करके उन्हें अपने अधीन का लेता था उसके चापलूस मंत्री किसी बड़े राज्य की जानकारी देते और उसे वह अपने अधीन करने के लिए उकसाते थे  उसकी राज्य पाने की लालसा दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी उसे किसी राज्य की या किसी ऐसी वस्तु की जो अति सुंदर हो लेकिन उसके पास ना हो यह उसे स्वीकार नहीं था उसके आतंक से सभी दुखी थे यहाँ तक कि देवता भी दुखी हो उठे और यह देख इंद्र देव को बहुत क्रोध आया सभी देवताओं से मिलकर इस समस्या से मुक्ति पाने की योजना बनाई वे उस राजा के पास ब्राह्मण का वेश धारण करके राजा के पास गए राजा ने उनका खूब सत्कार किया और अपने राज्य का वर्णन करना शुरू किया तभी वह बोले मुझे क्षमा करें राजन आपके पास भले ही सब कुछ हैं परंतु अभी भी आपके पास वो राज्य नहीं हैं जो अति सुंदर और विशाल है उसकी खूबसूरती भी अद्वितीय है
 राजा सोच में पड़ गया कि ऐसा कौन सा राज्य है जो उसके पास नहीं है और वो इसके बारे में नहीं जानता है। राजा चिंता में डूब गया। इसी बीच ब्राह्मण के वेश में आए इंद्रदेव चले गए राजा को बाद में ध्यान आया कि उसने तो उस ब्राह्मण से उस राज्य का पता तो पूछा ही नहीं वह उस राज्य को पाने की इच्छा से अपने मंत्रियों सैनिकों गुप्तचरो को उस राज्य की खोज में भेज दिया कई दिन बीत गए लेकिन उन्हें वह राज्य नहीं मिला। राजा की तृष्णा बढती ही जा रही थी, वह किसी भी कीमत में उस राज्य को पाना चाहता था कोई भी उस राज्य को नहीं ढूंढ पाया था। राजा दिन रात उसी राज्य के बारे में सोचने लगा राज्य के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलने के कारण धीरे धीरे राजा बीमार पड़ने लगा वह अस्वस्थ होने के कारण काफी दुबला हो गया था सभी चिंतित थे कि उन पर कोई दवा अपना असर नहीं कर रही थी । एक दिन एक संत उस राज्य में आए रानी ने उन्हें बुलवाया और उनका खुब सत्कार किया। रानी ने संत से कहा हे महात्मन महाराज की दशा दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही हैं उन पर कोई दवा भी असर नहीं कर रही हैं। कृपया आप इनके स्वस्थ होने का कोई उपाय बताएं। संत बहुत ही ज्ञानी विद्धवान और दूरदर्शी थे। वे राजा के कक्ष में गये राजा को देखकर उन्होंने कहा , राजा को कोई रोग नहीं हैं, परंतु राजा को कोई ऐसी वस्तु पाने की चिंता हैं जो अनौखी हैं। तब रानी ने उन्हें पुरी घटना कह सुनाई। तब संत बोले यही चिंता इनके अस्वस्थ रहने का कारण हैं उन्होंने राजा से कहा महाराज ऐसा कोई राज्य नहीं हैं जैसा आप वर्णन करते हैं । महाराज इस राज्य को पाने की लालसा ने आपको रोगी बना दिया जब आपका शरीर ही स्वस्थ नहीं हैं तो यह धन वैभव आपके किस काम का हैं। इसीलिये कहा जाता हैं कि पहला सुख निरोगी काया अतः आप इस लालसा को त्याग दीजिए और जो आपके पास हैं उसी में संतोष करें। राजा को समझ आ चुका था अब उसने उस राज्य को पाने की इच्छा छोड़ दी कुछ समय बाद राजा पुरी तरह स्वस्थ हो गया। तो मित्रों हमें इस कहानी से ये शिक्षा मिलती हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है हमें उसी में संतोष करना चाहिए। तृष्णा एक ऐसा रोग हैं जिसका कोई इलाज नहीं हैं।